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________________ 204 विचार, वर्णवुं शत्रुंजय तीर्थ उद्धार. (२) सुरवर मांहे वडो जेम इन्द्र, ग्रह गणमांहे वडो जेम चंद्र, मंत्रमांहे जेम श्री नवकार, जलदायकमां जिम जलधार, (३) धर्ममांहे दयाधर्म वखाणुं व्रतमांहे जेम ब्रह्मव्रत जाणुं, पर्वतमांहे वडो मेरु होई, तेम शत्रुंजय सम तीर्थ न कोई. ( ४ ) (राग - प्रभु पासनुं मुखडुं जोवा) (ढा. २) आगे ओ आदि जिनेसर, नाभिनरिंद मल्हार, शत्रुंजय शिखर समोसर्या, पुरव नवाणुं वार. (५) केवलज्ञान दिवाकर, स्वामी श्रीऋषभजिणंद; साथे चोराशी गणधरा, सहस चोराशी मुणिंद. (६) बहु परिवारे परिवर्यां, शत्रुंजय अकवार, श्री ऋषभजिणंद समोसर्या, महिमानो न लहुं पार. (७) सुरनर कोडी मिल्या तिहां, धर्म देशना जिन भाषे; पुडरिक गणधर आगले, शत्रुंजय महिमा प्रकाशे . ( ८ ) सांभळो पुंडरिक गणधर, काल अनादि अनंत; अ तीरथ छे से शाधतुं, आगे असंख्य अरिहंत. (६) गणधर मुनिवर केवली, पाम्या अनंती कोडी; मुक्ते गया इण तीरथे, वळी जाशे कर्म विछोडी. (१०) क्रूर होये जे जीवडा, तीर्यंच पंखी कहीजे; अ तीरथ सेव्या थकी, ते सीझे भवत्रीजे, (११) दीठे दुर्गति वारे, सारे अ वांछित काज. सेव्यो श्री शत्रुंजय गिरिवर, आपे अविचळ राज. ( १२ ) (राग -नमोरे नमो श्री शत्रुंजय गिरिवर) (ढा. ३) उत्सर्पिणी अवसर्पिणी आरो, बिहु मलीने बारजी; वीस कोडाकोडी सागर केरुं, मान कह्यु निरधारजी. (१३) पहेलो आरो सुसम सुसमा, सागर कोडाकोडी चारजी; ते काळे अ श्री शत्रुंजय गिरिवर, अंशी जोयण अवधारजी. (१४) त्रण कोडाकोडी सागर आरो, बीजो सुसम नामजी; तदाकाले अ श्री शत्रुंजय, सीत्तेर जोयण अभिरामजी. (१५) त्रीजे सुसम दुसम आरो, सागर कोडाकोडी दोय जी; सांठ जोयणनुं मान शत्रुंजय, तदा काले तुं जोयजी. (१६) चोथो दुसम सुसम जाणो, पांचमो दुसम आरोजी; छठ्ठो दुसम दुसम कहीजे, अत्रणे थई विचारोजी. ( १७ ) अक कोडाकोडी सागर केरुं, अहनुं कहीओ मानजी; चोथे आरे श्री शत्रुंजय गिरिवर, पचास जोयण प्रधानजी. (१८) पांचमे छट्ठे अकवीश ओकवीश, सहस्स वरस वखाणोजी; बार जोयणने सात हाथनो, तदा विमलगिरि
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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