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________________ 403 रसना भंडार ॥ वीर मारा० ॥५॥ साडाबार वर्ष तप कीधो, सही उपसर्ग केवल लीधो, मारा हैयाना हार, साचा तारणहार ॥ वीर मारा० ॥६॥ गुरु हीरसूरि प्रवर गावे, वीर चरणोमां शीष जुकावे, अरजी ऊरमां धरो, भवपार करो, वीर मारा कोटि कोटि हो वंदन मारा० ॥७।। (26) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : तेरी प्यारी प्यारी) ताहरे वयणे मनडुं मोयुं रे, गिरुणा गुण दरिया, ताहरे चरणे चित्तढुं भेधुं रे, मीठा ठाकुरिया.... (१) साकर द्राक्ष थकी पण अधिकी, प्रभु मारा मीठी तारी वाणी, सांभळता संतोष न थाये, अमृत रसनी खाणी....(२) वयण तमाळं सांभळवाने, प्रभु आसक्त थईने रहीए, सांभळतां संतोष न थाये, फरी फरी भामणे जईए.... (३) ऋद्धिवंता बहु राज्य तजीने, प्रभु जे तुम वयणाना रसिया, सघळी वात तणो रस छांडी, आवी तुज चरणे वसिया,....(४) सुरनर मुनिजन जनमन भावी, प्रभु ग्रंथे जे गुणखाणी, श्री जिनवर तणी सुणी वाणी, बुझ्या बहु भवि प्राणी....(५) त्रण भुवनने पावन करवा, प्रभु निर्मल जे निसरणी, उदय-रत्न' कहे भवजल तरवा, सही नावा संवरणी....(६) (27) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : अब सोय दिया) तारा मुखडा उपर जाउं वारी रे वीर मारा मन मान्या तारा दर्शननी बलिहारी रे वीर मारा मन मान्या....(१) मूठी बाकुळा माटे आव्या रे मने हेत धरी बोलावी रे....(२) पाये कीधी झांझरनी जेण रे माथे कीधी मुगटनी वेण रे प्रभु शासन नायक रूडो रे में तो पहेर्यो तारा नामनो चूडो रे....(३) ये चूडो सदा काळ छाजे रे, मारे माथे वीर-धणी गाजे रे, अने आपी ज्ञाननी हेली रे, पहेलां थया चंदनबाला चेली रे....(४) एने ओधो मुहपत्ति हाथ रे, तिहां महावीर विचरंता आव्यारे मने आपी ज्ञाननी हेली रे, बीजा थया मृगावती चेली रे,....(५) तिहां देशना अमृतधारी रे, भवि जीवने कीधां उपगारी रे, चंद्र सूर्य मूळ विमाने आव्या रे, चंदनबाला उपाश्रये आव्या रे.... (६) चंद्र सूर्य स्वस्थाने जावेरे, मृगावती उपाश्रये आवे रे, गुरुणीजी बार उघाडो रे, गुरुणीजीए कीधो ताडो रे,....(७) गुरुजीने खमाववा लाग्या रे,
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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