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सुकोमळ चीर. चक्केसरी केसर, सरस सुगंध शरीर, करजोडी बीजे, हुं प्रणमुं तस पाय, ओम लब्धिविजय कहे. पूरो मनोरथ माय. ४
(15) पंचतीर्थ स्तुतिः श्रीशत्रुजयमुख्यतीर्थ तिलकं श्रीनाभिराजांगजं, वन्देरैवतशैलमौलिमुकुटं, श्री नेमिनाथं यथा; तारंगेङप्यजितं जिनं भृगुपरे, श्रीसुव्रतस्तम्भने, श्रीपार्धं प्रणमामि सत्यनगरे, श्रीवर्द्धमानं त्रिधा; १ वन्देङनुत्तरकल्पतल्पभुवने, ग्रैवेयकेव्यन्तरा,-ज्योतिष्काम-रमन्दराद्रिवसती, स्तीर्थं करानादरात्ः, जम्बूपुष्कर-धातकीषु रुचके, नन्दिश्वरे कुन्डले, ये चान्येपि जिना नमामि सततं, तान् कृत्रिमांकृत्रिमान्; २ श्रीमद्विरजिनास्यपद्मादतो निर्गम्य तं गौतम, गंगावर्तनमेत्य या प्रविभिदे, मिथ्यात्ववैताठ्यकम्; उत्पत्ति-स्थितिसंयुतित्रिपथगा, ज्ञानाम्बुदा-वृद्धिगा, सामेकर्म-मलं हरत्वविकलं, श्रीद्वादशांगी नदी; ३ शक्रचंद्ररविग्रहाश्च-धरण,ब्रह्मेन्द्रशान्त्य-म्बिका, दिक्पालाः सकपर्दिगोमुखगणि,श्वकेश्वरी भारती; येङन्ये ज्ञानतपः क्रियाव्रतविधिश्रीतीर्थयात्रादिषु, श्री संघस्य तुरा चतुर्विघ सुरा,स्ते सन्तु भद्रंकराः; ४
(16) श्री शQजय स्तुति जीहां ओगणोत्तर कोडा कोडी, तेम पंचाशी लख वळी जोडी; चुम्मालीश सहस्स कोडी, समवसर्या जिहां अतीवार; पूर्व नवाणुं ओम प्रकार, नाभि नरिंद मल्हार. १ सहसकुट अष्टापद सार, जिन चोवीश तणा गणधार; पगलांनो विस्तार, वली जिनबिंब तणो नहीं पार; देहरी थंभे बहु आकार, वंदु विमलगिरि सार; २ अंशी सीत्तेर साठ पचाश, बार जोयण माने जस विस्तार, इग बीती चउ पण चार; मान कह्यु तेहy निरधार, महिमा अहनो अगम अपार, आगम माहे उदार; ३ चैत्री पूनम दिन शुभ भावे, समकित दृष्टि सुरनर आवे, पूजा विविध रचावे; ज्ञानविमलसूरी भावना भावे, दुरगति दोहग दूर गमावे, बोधि बीज जस पावे. ४
___(17) श्री शजय स्तुति श्री शत्रुजय तीरथ सार, गिरिवरमां जेम मेरू उदार, ठाकुर राम