________________
92
सकल सुहंकरा, वर वाचक मेघ पवन मुदा, मेघ चंद्र हुवा सुख संपदा ४
(64) श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र स्तुति वासुपूज्य जिनेश्वरनंदा, जयामाता आनंदकंदा, सर्व जीव सुखकंदा, वासुपूज्य जिनेश्वर वंदो, भवभव संचित पापनीकंदो आतम गुण आणंदो. १ ऋषभादिक चोवीश जिणंदा जेने सेवे सुरनर इंद्रा; मनधरी हरख आनंदा; तास चरण सेवे मन शुद्धा, शिवसुख कारण सवीओ लुद्धा; निरमल सुरसा दुद्धा. २ रोहीणी प्रमुख तपस्या सारी, जे भाषित जिनवर गणधारी, भविक करे हितकारी, अहवा आगम जे चित्तधारे, श्री जिनवाणी पढे पढावे; तेह अक्षय सुख पावे. ३ श्री जिन शासन सानिध्यकारी, धूरथी मंगल दुरित निवारी, सेवो शुभ आचारी, कल्याणकारी जिनने सेवो, सुरनर पूजित शासन देवो, विघ्न हरे नित्य मेवो.
(65) श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र स्तुति वासुपूज्य जिनराज बिराजे, जलधर परे मधुरी ध्वनी गाजे, रुपे रतिपति लाजे, नितनित दिसे नवल दिवाजे, दरीसण दिठे भावठभांजे, निरमल गुणमणिछाजे, आंतरोली पुर मंडण स्वामी, मुगतीवधू जेणेहेला पामी, इन्द्रनमे शिरनामी, त्रीभुवन ज़न मन अन्तरजामी, अकल अरुप सहज विसरामी, वाचक जग जस नामी, १ समरुं चोवीशे जिनराज, जे सेव्ये आपे शिवराज, सीजे सघळा काज, नमे सवि सूर शिरताज. जे संसार पयोनिधिपाज, सेवे सुजन समाज, स्वर्ग मृत्यु पाताल निवासी, जे दीठे भविकमल उल्लासी, मुगतिसिरि जगदासी, परम ज्योती प्रगट अभ्यासी, जेहनीमति करुणाए वासी, पातीक जाये नासी, २ जिनवर आगम जलधि अपार, नानाविधि रयणे करी सार, सकल साधु सुखकार, जीवदया लहरी आधार, बहुल जुगती जलपुर उदार, जिहां नवत्तत्व विचार, जेहसुं विलसे त्रिपदीगंगा, जेहमांहे सोहे अति बहु भंगा, नितनित नूतनरंगा, ३ वासूपूज्य पूजे जस नामे; सवि संकट ध्रुजे, जसकामे कामधेनु, घर दूजे, जस दृष्टि जिन पडीबुझे, सकल शास्त्रना अर्थ ज बुझे, कुमति मति पडीबुझे, श्री विजयसिंह सूरि चित्त आणी, श्री विजय देवसूरीदे वखाणी, जगमाहे जे