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________________ 468 देखीयो रे, अति स्नेह कीधो अम साथ, राय अशोके वळी पुछीयुं रे; गुरु बोले सुगंधी राय, देव थई पुष्कलावती रे; विजये थई चक्री तेह; संयम धर हुवा अच्युतपति अ...॥३॥ चविने थया तमे अशोक, ओक तपे प्रेम बन्यो घणो रे, सात पुत्री नी सुणजो वात, मथुरामां अक माहणो रे, अग्नि शर्मा सुत सात, पाटलीपुर जई भीक्षा भमेरे, मुनि पासे लेई वैराग्य, विचर्या साते रहि संजमे रे,...॥४॥ सौधर्मे हुवा सुत सात, ते सुत साते रोहीणी तणा रे, वैताढ्ये भिल्ल चुल खेट, समकित शुद्ध सोहामणो रे, देवगुरूनी भक्ति पसाय, धुर स्वर्गे थई देवतारे,...॥५॥ वळी खेट सुता छे चार, रमवाने वनमा गईर, तिहां दीठा ओक अणगार, भाखे धर्म वेला थई रे; पूछवाथी मुनि कहे भाग; आठ पहोर तुम आयु छे रे, आज पंचमीनो उपवास, करशो तो फलदायी छे रे...॥६॥ ध्रुजंती करी पच्चक्खाण, गेह अगाशे जई सोवती रे, पडी विजळीओ वळी तेह, धुर सुरलोके देवी थईओ, चवी थई तुम पुत्री चार, ओक दिन पंचमी तप करीरे, इम सांभळी सहु परिवार, वात पुर्व भवनी सांभळी रे,...॥७।। गुरुवांदि गया निज गेह, रोहीणी तप करता सहु रे, मोटी शक्ति बहुमान, उजमणां वस्तु बहु रे, इम धर्म करी परिवार, साथे मोक्ष पुरी वरी रे, शुभ वीरना शासन माही, सुभ फल पामो तप आदरी रे...॥८॥ (कळश) इम त्रिजग नायक, मुक्तिदायक, वीर जिनवर भाखीयो, तप रोहीणीनो फल विधाने, विधि विशेषे दाखियो; श्री क्षमा विजय जसविजय पाटे, शुभ विजय सुमति धरो, तस चरण सेवक, कहे पंडित, विर विजय जय जय करो...॥१॥ (17) श्री रोहीणी तपनुं स्तवन ढाल-६ (ढाळ १) हारे मारे वासुपूज्यनो नंदन मघवा नामजो, राणी तेहनी कमला पंकज लोयणी रे लो, हारे मारे आठ पुत्रने उपर पुत्री एक जो, मातपिताने व्हाली नामे, रोहीणी रे लो, ॥१॥ हां रे मारे पेखी यौवन वयनिज पुत्री भूपजो स्वयंवर मंडप मांडी नृप तेडावीयोरे लो, हारे मारे अंग बंगने मरूधर केरा रायजो, चतुरंगी फोजेथी चंपाए आवीयारे लोल, ॥२॥ हारे मारे पूरवभवना रागे रोहीणी तामजो, भूप अशोकने कंठे वरमाळा धरे रे लो, हारे मारे गजरथ घोडा दान अने बहुमान जो, देई कताने व्हाली नामवर मंडप माइजयी चंपाए आने कंठे
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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