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थुणतां विघ्न सहु दूरे टळे, वळी सिद्ध आचारज अने, उवज्झायथी शान्ति मळे; पंचम मनोहर साधु गणो पदने, सेवता शिवपुर गया, नव पद बळेसौ भावथी, अहमां अमुल मंत्रो भर्या. २ दर्शन तथा शुभज्ञानने, चारित्र पदनी योजना, अ त्रिपदनी आराधना, पूरे सदा सहु कामना; अंतिम रह्युं तप पद चमकतुं, बार जस भेदो रह्या; नव पद गणो सौ भावथी, अहमां अमुल मंत्रो भर्या. ३
(121) श्री चौदसे बावन गणधर चैत्यवंदन
सरस्वती आपे सरस वचन, श्री जिन थुणतां परखे मन; जिन चोविशे गणधर देव, प्रणमुं संख्या सुणो तेह. १ ऋषभ चोराशी गणधर देव, अजित पंचाणुं करो नित्य सेव; श्री संभव अकसो वळी दोय, अभिनंदन अकसो सोळ होय, २ अकसो सुमति शिवपुर वास, पद्मप्रभ अकसो सात खास; स्वामि सुपार्श्व पंचाणुं जाण, चंद्र प्रभ त्राणुं चित्त आण. ३ अठ्यासी सुविधि पुष्पदंत, अकाशी शितल गुणवंत; श्रेयास जिनवर छोत्तेर सुणो, वासु पूज्य छासठ भणी गयो. ४ विमलनाथ सत्तावन सुणो, अनंतनाथ पचास गुणो; तें तालीश गणधर धर्म निधान. शांतिनाथ छत्रीश प्रधान. ५ कुंथु जिनेश्वर कहुं पांत्रीश, अरजिन आराधो तेत्रीश; मल्ली अठ्ठावीश आनंद अंग, मुनि सुव्रत अष्टादश अंग. ६ नमिनाथ सत्तर सांभळ, अकादश नमो नेमि दयाळ; दश गणधर श्री पार्श्वकुमार वर्धमान अकादश धार. ७ सर्व मळी संख्याओ सार, चौदशो बावन गणधार; पुंडरीक ने गौतम प्रमुख, जस नामे लहीओ बहु सुख.. ८ प्रह उठी जपतां जयकार, ऋद्धि वृद्धि वांछित दातार; रत्न विजय सत्य विजय बुधराय, तस सेवक वृद्धि विजय गुण गाय. ६
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प्रथम तीर्थकरने नमुं, गणधर चोराशी देव; पंचाणुं अजित जिणंदना, हुं प्रणमुं नित्य मेव. १ श्री संभवजिनवर तणां, गणधर ओकसो दोय; अभिनंदन चोथा प्रभु, अकसो सोळ तस होय. २ सुमतिनाथ प्रभुजिन तणांओ, गणधर ओकसो जाणुं; पद्म प्रभु स्वामि तणा, अकसो सात वखाणुं . ३ श्री सुपार्श्वजिन सातमा, गणधर पंचाणुं सार; त्राणुं चंद्रप्रभु तणां, उतारे