________________
452
अरविंद मुनिवरू ए, के देखी संयम धरे ए, ७॥ जातिस्मरण पामी, मनराख्यं तिणे ठाम; कमठ उल्लंठ अहि ए, के हाथी डस्यो सहीए ॥८॥ त्रीजो भव देवलोक, आठमे अमर विलोक; नरके पंचम गयो ए, के कमठ सांपडोए ॥६॥ चोथे भव हवे जाणो, जंबुद्विप वखाणो; पूर्व विदेह जीहां ए, के सुवच्छ विजय तिहांये ॥१०॥ वैताढय पर्वतसार, तिलकापुरी भरतार; विद्युतगति सरू ए, के तिलकावति वरूए, ॥११॥ तास कुंखे सुत सार,
अमर तणो अवतार; कीरण वेग वळी ए, के नाम दीयो मन रळीए, ॥१२॥ विद्याधरनो राय, संयमशुं मन लाय; गिरि काउसग्ग करी ए, के मन उपशम धरीये, ॥१३॥ पंचम नरकथी आय, कमठ जीव अहि थाय; मुनिवर तेणे डस्यो ए, के ध्यानथी नवी खस्योए, ॥१४॥ बारमे कल्पे जाय, किरणवेग सुर थाय; नरके पंचम अहि ए के, पंचम भव लहीए, ॥१५।।
- (राग : सुमतिनाथ गुणसु मिलिजी) (ढाळ-२) छठो भव भविया हवे सुणो, जंबु-द्विप वखाण; पश्चिमविदेह सुगंध विजयतिहां, शुभंकरा नगरी जाण, गुणवंता निसुणो, पासना दश भव सार ॥१॥ वज्रवीर्य राजा षटखंडपति, लक्ष्मीवति भरतार; कीरणवेग विद्याधर देव, तास कुंखे अवतार । गुणवंता० ॥२॥ माय ताय हरखे करी ठवीयो, वज्रनाभ वर नाम; तात राज्य सुतने देई करी, चारित्र लीयो अभिराम, गुण० ॥३॥ क्षेमंकर जिन वाणी सुणतां, लाध्यो उपशम लाभ; चक्रायुध सुतने राज देई, चारित्र लीये वज्रनाभ गुण० ॥४॥ चौदपूर्व भणी करीजी, लब्धि लही आकाश; उडी सुकच्छ विजयमां पडीआ, देखी जलणगिरिखास। गुण० ॥५॥ मुनिवर तिहां काउस्सग्गे रहीआ, ध्यान धरे नवकार; कमठ जीव नरकथी आवी, पाम्यो भील अवतार। गुण० ॥६॥ काउसग्गे देखी वैर उछळीयो, बाणे हण्यो मुनिराय; एक पाक्षिक वैर करतो, जिहां तिहां दुर्गति जाय। गुण० ॥७|| मध्य प्रवेयके पहोतो, वज्रनाम मुनिसिंह, भील सातमी नरके पहोतो, सातमां भवनी लीह। गुण० ॥८॥ आठमो भव हवे जाणीएजी, जंबुद्विप विशाळ; पूर्वविदेह वखाणीयेजी, सुरपुर नयर रसाळ,। गुण० ॥६॥ वज्रबाहु तिहां राज करेजी, राणी सुदर्शना तास; एकदिन सुखकर सुति देखे, चौद सुपने मुख वास, । गुण०