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(10) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन एह संसारथी तार जिनेश्वर, एह संसारथी तार रे, मुनिसुव्रत जिनराज आज मोहे, भवजल पार उतार रे॥१॥ पद्मावती जी को नंदन नीरखी, हरखीत तन मन थाय रे, कच्छप लंछन प्रभु पद धारे, श्यामल वर्ण सोहाय रे०॥२॥ लोकांतिक सुर अवसर देखी, प्रति बोधन कुं आय रे, राज काज सब छोड दिये अब, संयमशुं चित्तलाय रे०॥३॥ तप जप संयम ध्यानथी रे, कर्म इंधन जल जायरे, लोकालोक प्रकाशक अद्भूत, केवल ज्ञान सोहाय रे०॥४॥ ज्ञानमें भाळी करुणाधारी, जीवदया प्रतिपाल रे, मित्र अश्व उपकार करण कुं, भरूअच्छ नगरमें आयरे।।५॥ अश्व ऊगारी बहु जन तारी, अजरामर पद पायरे, ज्ञान विमल कहे महेर करी द्यो, अमने तो शिवसुख थाय रे,॥६॥ (1) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : मन डोले मारूं तन डोले)
ओकवीशमां जिन आगळेथी, अरज करुं करजोड; आठ अरीओ मुज बांधीयोजी, ते भव बंधन तोड! प्रभुजी ! प्रेम धरीने अवधारो अरदास, ओ अरिथी अलगा रह्याजी, अवर न दीसे देव; तो किम तेहने जाचीओजी, किम करुं तेहनी सेव प्रभुजी!० (२) हास्य विलास विनोदमांथी, लीन रहे सुर जेह; आप अरिगण वश चड्याथी, अवर उगारे किम तेह प्रभुजी !० (३) छत होय तिहां जाचीयेजी, अछते किम सरे काज; योग्यता विण जाचताजी, पोते गुमावे लाज प्रभुजी !० (४) निश्चय छे मन माहरेजी, तुमथी पामीश पार; पण भूख्यो भोजन जमेजी, भाणे न टके लगार प्रभुजी !०(५) मोटानां मनमां नहीजी, अर्थी उतावळो थाय; श्री खीमा विजय गुरु नामथी, जी जग जस वांछीत थाय प्रभुजी !० (६) (2) श्री नमिनाथ जिन स्तवन (राग : मैं तो भुल चली)
श्री नेमिनाथने चरणे रमता, मनगमता सुख लहीए, भवजंगलमा भमता रहीए, कर्म निकाचीत दहिए रे.....श्री० (१) समकित शिवपुर माही पहोंचाडे, समकित धर्म आधार रे, श्री जिनवरनी पूजा करीए, ए समकितनो सार रे.....श्री० (२) जे समकितथी होय उपरठा, ते सुख जाये नाठा रे, जे