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धारी, श्री विजयसिंहसूरी सन्नीधानो लाल प्रभु गुण दिल धारी, शिष्य ते सत्यविजय गुणगेहा, लाल प्रभु गुण दिल धारी, तस कपूर खिमाविजयससनेहा, लाल प्रभु गुण दिल धारी. २. सेवक जशविजयो जयवंता, लाल प्रभु० पंडित श्री शुभ विजय महंता, लाल प्रभु० तस शिष्ये गरबी देशीमांहि लाल प्रभु० गायो नेमिविवाह उच्छाहि लाल प्रभु० ३. नभ भोजन गज चंद्रने (१८६०) वरसे, लाल प्रभु० पोष तणी वदि आठम दिवसे, लाल प्रभु० राजनगरमां श्रावक शोभे, लाल प्रभु० गुरु उपदेशे कुमति थोभे, लाल प्रभु० ४. वंश श्रीमाली अमिचंद नंदे, लाल प्रभु० घरे जिनपूजी गुरुनीत वंदे, लाल प्रभु० बावीसमो जिन बावीस ढाळे लाल प्रभु० ५. थुणिया विरविजय जयकारी लाल प्रभु० सुणशे गाशे जे नरनारी, लाल प्रभु तस घर मंगलमाल रसाला, लाल प्रभु० विमला कमला झाक झमाला लाल प्रभु गुण दिलधारी . ६ .
(1) पार्श्वनाथ जिन स्तवन दशभव (राग
साबरमती के संत)
वामादेवीना नंद तमे सुणजो वितराग, शंखेश्वर दरबारमा गाउ मधुरा राग, जय जय जय जय पारसनाथ || 9 || पोतन पुरी पहेले भवे समकितने लीधां, “मरुभूति” नामे तमे सत्कार्योने कीधां; खमावता निज भाईने, मृत्यु शिरे लीधां, समता धरी आपे अहा ! पामे न कोई ताग. ॥२॥ बीजे भवे हस्ति बन्यां, जिन धर्मने पाम्यां, सर्पे दीधो विष डंखने, तोये तमे खम्यां; मृत्यु थयुं, स्वर्गे गया, दिल धर्ममां जाम्यां, धन्य हे जगनाथ, समाधी तमारी साथ. ||३|| विद्याधर चोथे भवे वैराग्यने पाया, राज्य त्यजी रळीयामणुं, संसारनी माया; अणगार थई विचरे सदा, जिन ध्यानने ध्याया, झेरी डस्यो भुजंग तोय प्रेमना निनाद. ||४|| बारमे स्वर्गे गया भव पांचमो उजमाळ, त्यांथी च्यवी छट्ठे भवे विदेहमां अवतार; कुमार व्रजनाभ नाम संयम स्विकार; भीले कर्यो तीर घा मुनि धीर वडभाग ॥५॥ ग्रैवेयके सुर देवता भव सातमो सुजाण, त्यांथी च्यवी विदेहमां चक्री बन्यां कल्याण; सुवर्णबाहु नाम गुणरत्ननीओ खाण, दीक्षा ग्रही जिनराज पास. धन्य हे नरनाथ || ६ || निकाचता जिननामने अणगार महाधीर, वनराज स्मरी वैरीने मारे मुनिवर वीर; नवमें भवे स्वर्गे गया, खील्युं महाखमीर, वाह रे जिनराज ! तमे शिवपुरनी पाग. ||७|| जंबुद्विपे गंगा तीरे