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पू. आ. दे. कलापूर्ण सू. म. सा. गुणगान
भारतनी आभव्य भूमि परं, दिव्य विभूति नाम धरा, अपूर्व साधना त्याग तपस्यां, अध्यात्मयोगि कल्याण करा, सिद्धि पथना साधक गुरूवर, मिथ्यात्वने नित्यहरा, कलापूर्ण सूरी गुरूवर चरणे, श्री संघ वंदन भावभरा ।।१।। जिन शासनना साम्राज्यमां, चमका एक सितारा, कलापूर्ण सूरी गुरुराजने, वंदन कोटि हमारा, ।।२।। समदर्शी शीतल सदा, जिसकी अद्भुत चाल, ऐसे सद्गुरू कीजीए, जो पलमे करे निहाल ।।३।। जिनशासन के ओ ज्योतिर्धर, शासन के शणगार अध्यात्मयोगी आप गुरूवर, वंदन वार हजार, सर्व कला से पूर्ण गुरूवर, क्या गाए गुणगान, सर्वजीवो के हो हितचिंतक, जिनशासन की शान, ||४|| पावनकारी नाम छे जेनु, कलापूर्ण सूरिराज अगणित छे गुणवान गुरूवर, जिनशासन शिरताज ।।५।। सरल ह्रदयने सादु जीवन, करूणानी छे मुर्ति, समता रसना सागर ए छे, संयममां छे स्फूर्ति, ।।६।। सौम्य वदनने प्रसन्न मुद्रा, वहाल भरी छे वाणी, जेनुं दर्शन श्रवण करीने, धन्य बने भवि प्राणी, ||७|| लगनी एक ज छे जीवनमां, परमातम मिलननी, जीव बधा छे प्यारा जेने, तेना हित करणनी, ।।८।।
पू. आ. दे. कलापूर्ण सू. म. सा. गीत
___(राग-जहां डाल डाल पर) - गाम गाममां जेना नामे वागे विजय नगारां, आ छे गुरूदेव अमारा, पल पल जेना दिलमां वहेती, भक्ति रसनी धारा, कलापूर्ण सूरीधर प्यारा; (२)।।१।। बीज रोपायुं राजस्थाने, फूल विकस्युं कच्छमां, सुगंध प्रसरी सारा विश्वे, रविशा सोळे गच्छमां (२)।।२।। पाबुदान कुल पंकज दिनकर, खमा देवी दुलारा; ।। कलापूर्ण०।।२।। मारवाड मेवाड मालवा, सोरठ ने गुजराते, विचरी भव्यो तार्या अगणित, दइ उपदेश दिन राते. (२) शासन सेवा सारू सारी, धरती पर | फरनारा; ||कलापूर्ण०||३|| घोर अंधारू भौतिकतानु, व्याप्युं छे कलिकाले, प्रकाश तेमां करता, सम्यग्दर्शन केरी मशाले ।।२।। दशे दिशाए उमंगे जेना, लोक लगावे नारा, ।।कलापूर्ण।।४।। शाल भाल सुनिर्मल लोचन, सुप्रसन्न मुख मुद्रा, नहि म्लानि नहि ग्लानि क्यारे, नहि आळस नहिं तन्द्रा-२ प्रतिपल परमातम भजनारा, दुनियाथी जे रहे न्यारा, ।। कलापूर्ण०||५|| अध्यात्मयोगी प्रशान्तमूर्ति, अद्भूत किया स्फुर्ति, आत्मानुभूति विरल विभूति, विश्व विस्तृत कीर्ति-२ कहेतां | पार न आवे जेना, गुण छे अपरंपारा;|| कलापूर्ण०।६।। बालक बोले बल संयमनुं, आपो भव दुःख कापो, कला मुनि जीवननी शीखवी, मुक्ति महेले स्थापो, ह्रदयधारा ओगुरू प्यारा करूणाना छो क्यारा; ।। कलापूर्ण०।७।।