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________________ 377 करती फरती फुदडी कर जालीने बेहुजणे रे, जालादेती लेती नामने वारंवार, जुगजुग जुगजुग जीवो जयवंता जिनराजजी रे, रुडो रुडो विश्वमें, तुम केरो उपकार ।। वामा० ॥७॥ गडगड गडगड करतो गाजतो चमकतो जोरशुं रे, वरसे जलधर जाणे जेहवो प्रयलकाल, कारण विणकिम कटके, जटके एहवो मेहुलो रे, जोइ अवधियेछे, कमठासुर कंगाल, ॥ वामा० ॥८॥ हांकी हलकारी कहे अहिपतिरे तुं पापीया रे, तुजने शिक्षा थइ इहां बंदर सुगरी चाल, एहतो जिनजी समतारसकेरा भंडार छे रे, हुं तो हणशुं हणशुं ताहरी चाल कुचाल ॥ वामा० ॥६॥ एहवा वयण सुणीने धग धग धग धग ध्रुजीयो रे, प्रत्यक्ष देख में सहु ए, कार्यो आल पंपाल, प्रभुना चरणा शरणा विन नहि मारो छूटको रे, हुं तो छोडुं छोडूं छोडूं मिथ्या पर जंजाल | वामा० ॥१०॥ सरसर सरसर सरसर संकेले सहु मेघने रे, जोडी अंजली प्रांजली जिनवरना नमेपाय, सामे करजोडीने खमजो हे करुणानिधि रे, समकित पामी खामी साचो भक्त सोहाय ॥ वामा० ॥११॥ नमीने खमीने निजनिज निजनिज स्थाने तेगया रे, त्यांथी थयो हो प्रभुने अहिछत्र सहेलाण, मक्षी पारसने पण एहीज शिरपर सोहतो रे, पुनीजगामे पण एहीज लंछनजाण ॥ वामा० ॥१२॥ एहनी सेवा सुखर सारतां सघलां भावशुं रे, वली वली वारतां विघ्नो व्यसनोनां विस्तार, सेवोसेवो ही मक्षीपारसनाथने रे, करशे करशे ए सही भव भावट निस्तार । वामा० ॥१३॥ हुं तो प्रणमुं प्रणमुं पद पंकज प्रभु पार्श्वना रे, हेते गाया गाया गुणगण आनंदपुर, आपो आपो मुजने, मुक्ति विमल सुख शाश्वतुं रे, जेहथी थाशे थाशे रंग विमल दुःख दूर ।। वामा० ॥१४॥ (40) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (अब सोंप दिया इस) जिनराज नमो जिनराज नमो, अहनिश प्रभु भावे चित्त रमो। दुःख दोहग दुरित मिथ्यात गमो, चउ गति भव वनमा जिम न भमो। जि० १ प्रभु पास जिनेसर वंदो रे, भव संचित दुरित निकंदो रे। प्रभु अनुभव ज्ञान दिणंदो रे, समता वनिता सवि इंदो रे। जि० २ प्रभुमें काळ अनंत गमायो रे, तुम दरिशन सार न पायो रे। जो पायो तो न सुहायो रे, त्रिकरण शुद्ध नवि ध्यायो रे। जि० ३ मुजने मोह महीशे रमाडयो रे। भवनाटक माहि
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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