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किर्ती विजयजी नामथी रे लाल, मुनि थया भीमासर गाम रे भ० भा०॥१५॥ छेदोपस्थापनाए ते थया रे लाल, कनक विजयजी नाम रे; भ० कच्छमां कनक मणि समा रे लाल, सर्व गुणोना धाम रे भ० भा०॥१६।। अनुक्रमे योग वहन करी रे लाल, आगम वाचना लीध रे; भ० छोत्तेर कार्तिक वद पंचमी रे लाल, पंन्यास पदवी प्रसिद्ध रे भ० भा० ।।१७।। आचार्य सिद्धि सूरिश्वरा रे लाल, श्री सिद्धक्षेत्र मोझार रे; भ० संघ समस्त पदवी दीए रे लाल, वरत्यो जय जय कार रे भ० भा०॥१८॥ पूर्व वृत्तांत प्रमोदथी रे लाल, तेहनी पहेली ढाळ रे; भ० सावधान थइ सांभळो रे लाल, हवे सुंदर सुगुण रसाल रे भ० भा०॥१६॥
(ढाळ २) गीतारथ पद पामीने जी, करता भवि उपकार; पाठक पद पंच्यासीए जी मल्लिनाथ दरबार, सूरिश्वर धन्य धन्य तुम अवतार ।।१।। उज्वळ एकादशी माघनीजी, भोयणी तीर्थ मोझार; उपाध्याय उमंगथी जी, देशना दीये मनोहार सूरी धन्य० ॥२॥ ज्ञान क्रिया उपदेशता जी, मधुर अर्थ सुखकार; भव्य जीवोना हित भणीजी, समजावे धर्मनो सार सूरी० धन्य० ॥३॥ तेह देशना सांभळीजी, दीक्षा केइ भव्य लीध; देशविरति केइ थया जी, समकित केइ प्रसिद्ध सूरी० धन्य०॥४॥ ग्रामानुं ग्राम विचरतां जी, राजनगर पावन कीध; संघ मळी महोत्सव कीयो जी, सूरीपद तिहां दीध सूरी० धन्य०॥५॥ नेव्यासी पोष वद सातमेजी, सिद्धि सूरीश्वर राय; पटधर मेघ सूरीश्वरजी कर्या जी, विजय कनकसूरी राय सूरी० धन्य०॥६।। शम दम रस सायर समाजी, शासनना शणगार रे; जंगम कल्प तरू समाजी, भविजनना आधार सूरी० धन्य०॥७|| शासन प्रभावना बह करेजी, प्रतिष्ठा उपधान; उद्यापन दीक्षा घणीजी, आगम वाचना पान सूरी० धन्य०॥८॥ छरी पालता संघ घणाजी, देशनो को उद्धार; काम कषायने जीतवाजी, निर्मम निरहंकार सूरी० धन्य०॥६॥ अष्ट प्रवचन मातशुंजी, वरस अठ्ठावन जाण; समता भावे आतमाजी, निर्मळ करे गुणखाण सूरी० धन्य०॥१०॥ संवत बे हजार थीजी, ओगणीश उपर थाय; श्रावण वद शुभ चोथनेजी, पन्नर धर कहेवाय सूरी० धन्य० ॥११॥ कच्छ वागड भूषण समोजी, भचाउ नामे गाम; शुक्रवारे सिधावीयाजी, सूरीश्वर सूरधाम सूरी० धन्य० ॥१२॥