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छअनुस्पतिनिद्देसो
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सम्मा च गतो तेन तेन मग्गेन पहीने किलेसे पुन अपच्चागच्छन्तो । वृत्तं तं - " सोतापत्तिमग्गेन ये किलेसा पहीना, ते किलेसे न पुनेति न पच्चेति न पच्चागच्छती ति सुगतो... पे०... अरहत्तमग्गेन ये किलेसा पहीना, ते किलेसे न पुनेति न पच्चेति न पच्चागच्छती ति सुगतो" ( ) ति। सम्मा वा गतो दीपङ्करपादमूलतो पभुति याव बोधिमण्डा ताव समतिंसपारमीपूरिकाय सम्मापटिपत्तिया सब्बलोकस्स हितसुखमेव करोन्तो सस्सतं, उच्छेदं, कामसुखं, अत्तकिलमथं ति इमे च अन्ते अनुपगच्छन्तो गतो ति सम्मा गतत्ता पि सुगतो । सम्मा चेस गदति यत्तट्ठाने युत्तमेव वाचं भासती ति सम्मा गदत्ता पि सुगतो । तत्रिदं साधकसुत्तं—“यं तथागतो वाचं जानाति अभूतं अतच्छं अनत्थसंहितं, सा च परेसं अप्पिया अमनापा, न तं तथागतो वाचं भासति । यं पि तथागतो वाचं जानाति भूतं तच्छं अनत्थसंहितं, सा च परेसं अप्पिया अमनाया, तं पि तथागतो वाचं न भासति । यं च खो तथागतो वाचं जानाति भूतं तच्छं अत्थसंहितं सा च परेसं अप्पिया अमनापा, तन्न कालञ्जू तथागतो होति तस्सा वाचाय वेय्याकरणाय । यं तथागतो वाचं जानाति अभूतं अतच्छं अनत्थसंहितं, सा च परेसं पिया मनापा, न तं तथागतो वाचं भासति । यं पि तथागतो वाचं जानाति भूतं तच्छं अनत्थसंहितं सा च परेसं पिया मनापा, तं पि तथागतो वाचं न भासति । यं च खो तथागतो वाचं जानाति भूतं तच्छं अत्थसंहितं, सा च परेसं पिया मनापा, तत्र कालञ्जू
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( = अनिन्दनीय) है। वह क्या है? आर्यमार्ग । इस गमन से वे क्षेम (= निर्वाण) की ओर रागरहित होकर गये, अतः शोभन गमन करने से सुगत कहलाये । वे अमृत-निर्वाण जैसे सुन्दर स्थान तक गये, अतः सुन्दर स्थान में जाने से भी सुगत हैं।
तथा क्लेशों का प्रहाण हो जाने से पुनः पीछे न लौटते हुए, उस उस मार्ग से सम्यक् रूप से गये। क्योंकि कहा गया है- "जो क्लेश स्रोतआपत्ति मार्ग में प्रहीण हो चुके हैं, उन क्लेशों तक पुनः नहीं जाते, नहीं लौटते, अतः सुगत हैं... पूर्ववत्... अर्हत् मार्ग से जो क्लेश प्रहीण हो चुके हैं, उन क्लेशों तक पुनः नहीं जाते, नहीं लौटते, अतः सुगत हैं। " ) अथवा दीपङ्कर बुद्ध के चरणों से लेकर बोधिमण्ड तक तीस पारमिताओं को पूर्ण करते हुए, शाश्वत, उच्छेद, कामसुख, 'अत्तकिलमथ' (= स्वयं को पीड़ित करना ) – इन अन्तों का अनुसरण न करते हुए सम्यक् रूप से गये, अतः सम्मा गतत्ता पि सुगतो ।
और यह (बुद्ध) सम्यक् वाचन करते हैं, उचित स्थान पर उचित वाणी बोलते हैं, अतः सम्मा दत्ता पि सुगतो ।
यहाँ यह सूत्र प्रमाणस्वरूप है - " जिस वचन को तथागत असत्य, तथ्यहीन, अहितकर समझते हैं, और जो दूसरों के लिये अप्रिय और अग्राह्य होता है, ऐसा वचन तथागत नहीं बोलते। जिस वचन को तथागत सत्य, तथ्य, अहितकर समझते हैं, और जो दूसरों के लिये अप्रिय और अग्राह्य होता है, उस वचन को भी तथागत नहीं बोलते। एवं जिस वचन को तथागत, सत्य, तथ्य, हितकर समझते हैं, और वह दूसरों के लिये अप्रिय और अग्राह्य होता है, वहाँ उसे कहने का उचित समय तथागत जानते हैं। जिस वचन को तथागत असत्य, तथ्यहीन अहितकर समझते हैं, और वह दूसरों के लिये प्रिय और ग्राह्य होता है, उस वचन को भी तथागत नहीं बोलते। जिस