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विसुद्धिमग्गो तस्सेव सीघं सीधं गणयतो कम्मट्ठानं निरन्तरं पवत्तं विय हुत्वा उपट्टाति । अथ निरन्तरं पवत्तती' ति ञत्वा अन्तो च बहि च वातं अपरिग्गहेत्वा पुरिमनयेनेव वेगेन वेगेन गणेतब्। अन्तो पविसनवातेन हिं.सद्धिं चित्तं पवेसयतो अब्भन्तरं वातब्भाहतं मेदपूरितं विय होति। बहि निक्खमनवातेन सद्धिं चित्तं नीहरतो बहिद्धा पुथुत्तारम्मणे चित्तं विक्खिपति। फुटफुट्ठोकासे पन सर्ति ठपेत्वा भावेन्तस्सेव भावना सम्पज्जति । तेत वुत्तं-"अन्तो च बहि च वातं अपरिग्गहेत्वा पुरिमनयेनेव वेगेन वेगेन गणेतब्बं" ति। "
___ कीवचिरं पनेतं गणेतब्बं ति? याव विना गणतायें अस्सासपस्सासारम्मणे सति सन्तिट्ठति । बहि विसटवितक्कविच्छेदं कत्वा अस्सासपस्सासारम्मणे सतिसण्ठापनत्थं येव हि गणना ति।
(२) एवं गणनाय मनसिकत्वा अनुबन्धनाय मनसिकातब्बं । अनुबन्धना नाम गणनं पटिसंहरित्वा सतिया निरन्तरं अस्सासपस्सासानं अनुगमनं। तं च खो न आदिमज्झपरियोसानानुगमनवसेन।
बहि निक्खमनवातस्स हि नाभि आदि, हदयं मज्झं, नासिकाग्गं परियोसानं । अब्भन्तरं पविसनवातस्स नासिकग्गं आदि, हदयं मझं, नाभि परियोसानं। तं चस्स अनुगच्छतो
हुए एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह, एक, दो, तीन, चार, पाँच, छह, सात ...पूर्ववत्... आठ...नौ... दस-यों जल्दी जल्दी ही गिनना चाहिये। क्योंकि जब कर्मस्थान गणना से जुड़ा हुआ होता है, तब गणना के बल से ही चित्त एकाग्र रहता है, तेज धार में पतवार के बल से नाव को स्थिर किये जाने के समान।
____ जब वह जल्दी जल्दी गिनता है, तब वह कर्मस्थान बराबर बना हुआ जान पड़ता है। तब 'निरन्तर प्रवृत्त होता है' ऐसा जानकर भीतर और बाहर की वायु को ग्रहण न कर, पूर्वविधि के अनुसार जल्दी जल्दी गिनना चाहिये। भीतर प्रवेश करने वाली वायु (=आश्वास) के साथ चित्त को प्रविष्ट कराते (ध्यान लगाते) हुए ऐसा लगता है जैसे भीतर वायु प्रहार कर रही है, मेद (वसा) भर गयी है। बाहर निकलने वाली वायु (=प्रश्वास) के साथ चित्त को बाहर निकालते हुए बाहरी आलम्बनों की अनेकता में चित्त विक्षिप्त हो जाता है। (यही कारण है कि आश्वास-प्रश्वास द्वारा) स्पृष्ट स्थानों में स्मृति को स्थिर रखकर भावना करने वाले में ही भावना उत्पन्न होती है। इसलिये कहा गया है-"भीतर और बाहर वायु का ग्रहण न कर, पूर्वविधि से ही जल्दी जल्दी गिनना चाहिये।"
कितनी देर तक इसे गिनना चाहिये? जब तक कि बिना गिनती किये ही, आश्वास-प्रश्वास रूपी आलम्बन में स्मृति स्थिर न हो जाय। (वस्तुतः) बाहर फैले वितर्कों को दूर कर, आश्वासप्रश्वास आलम्बन में स्मृति की स्थापना करने के उद्देश्य से ही गणना की जाती है।
२. अनुबन्धना-यों गणना द्वारा मन में लाकर अनुबन्धना द्वारा मन में लाना चाहिये। गणना को छोड़कर, स्मृति द्वारा निरन्तर आश्वास-प्रश्वास का अनुगमन करने को अनुबन्धना कहते हैं, वह भी (उनके) आदि, मध्य और अन्त के अनुगमन को नहीं।
बाहर निकलने वाली वायु का आदि नाभि, मध्य हृदय और अन्त नासिका का अग्र (भाग)