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इद्धिविधनिद्देसो
२९३ १८. एवं पन पाटिहारियं केन कतपुब्बं ति? भगवता। भगवा हि यसं कुलपुत्तं समीपे निसिन्नं येव, यथा पिता न पस्सति, एवमकासि। तथा वीसयोजनसतं महाकप्पिनस्स पच्चुग्गमनं कत्वा तं अनागामिफले, अमच्चसहस्सं चस्स सोतापत्तिफले पतिट्ठपेत्वा तस्स अनुमग्गं आगता सहस्सित्थिपरिवारा अनोजादेवी आगन्त्वा समीपे निसिन्ना पि यथा सपरिसं राजानं न पस्सति तथा कत्वा, 'अपि, भन्ते, राजानं पस्सथा' ति? वुत्ते 'किं पन ते राजानं गवेसितुं वरं, उदाहु अत्तानं' ति? 'अत्तानं, भन्ते' ति वत्वा निसिन्नाय तस्सा तथा धम्मं देसेसि, यथा इत्थिसहस्सेन सा सद्धिं सोतापत्तिफले पतिहासि, अमच्चा अनागामिफले, राजा अरहत्ते ति। (१)
अपि च, तम्बिपण्णिदीपं आगतदिवसे यथा अत्तना सद्धिं आगते अवसेसे राजा न पस्सति, एवं करोन्तेन महिन्दत्थेरेनापि इदं कतमेव। (२)
१९. अपि च-सब्बं पि पाकटपाटिहारियं आविभावं नाम, अपाकटपाटिहारियं तिरोभावं नाम । तत्थ पाकटपाटिहारिये इद्धि पि पचायति, इद्धिमा पि। तं यमकपाटिहारियेन दीपेतब्बं। तत्र हि "इध तथागतो यमकपाटिहारियं करोति असाधारणं सावकेहि,
आधारभूत ध्यान से उठकर 'यह प्रकाशित स्थान अन्धकारमय' या 'यह अप्रतिच्छन्न प्रतिच्छन्न' या 'यह दृश्य अदृश्य हो जाय'-यों विचार (आवर्जन), परिकर्म कर, उक्त प्रकार से ही अधिष्ठान करता है।
अधिष्ठान करते ही, अधिष्ठान के अनुसार ही हो जाता है। दूसरे लोग पास में खड़े होने पर नहीं देखते हैं, स्वयं भी यदि न देखना चाहता है तो नहीं देखता है।
१८. ऐसा प्रातिहार्य पहले किसके द्वारा किया गया था? भगवान् के द्वारा। भगवान् ने ऐसा (प्रातिहार्य) किया कि यश कुलपुत्र पास ही बैठा था, किन्तु (उसके) पिता ने नहीं देखा। इसके अतिरिक्त-महाकप्पिन (नामक राजा) से मिलने के लिये दो हजार योजन तक जाकर, उसे अनागामी फल में एवं उसके एक हजार मन्त्रियों को स्रोतआपत्ति फल में प्रतिष्ठित किया। तत्पश्चात्, उसके पीछे पीछे एक हजार स्त्रियों के साथ अनोजा देवी आकर पास ही बैठी, परन्तु (भगवान् ने) ऐसा किया कि जिससे परिषद् के साथ राजा (उन स्त्रियों को) दिखायी नहीं दिये। "भन्ते! क्या राजा को देखा है?"-यों पूछे जाने पर कहा-"आप के लये राजा को खोजना अच्छा है या अपने आपको?" "अपने आपको, भन्ते!"-यह कहकर बैठी हुई उस (देवी) को इस प्रकार धर्म का उपदेश दिया जिससे कि हजार स्त्रियों के साथ वह स्रोतआपत्ति फल में प्रतिष्ठित हुई, (जबकि उसी समय), अमात्य अनागामी फल में, राजा अर्हत्त्व में। (१)
इसके अतिरिक्त, यह (प्रातिहार्य) मुहेन्द्र स्थविर द्वारा ताम्रपर्णी द्वीप में पहुंचने वाले दिन किया गया था, जिससे कि उनके साथ आये हुए शेष लोगों को राजा ने नहीं देखा। (२)
१९. इसके अतिरिक्त, सभी प्रकट (करने वाले) प्रातिहार्य आविर्भाव कहलाते हैं, एवं अप्रकट (करने वाले) प्रातिहार्य तिरोभाव कहलाते हैं। इनमें प्रकट प्रतिहार्य में ऋद्धि भी ज्ञात रहती है, ऋद्धिमान् भी। इसे यमक प्रातिहार्य (के उदाहरण) से स्पष्ट करना चाहिये; क्योंकि वहाँ १. द्र०-महावग्ग (वि० पि०) १/६ । २. द्र० अङ्गु० अट्ठ०, १/३२२, धम्म० अट्ठ०, २/१२४ ।