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अभिज्ञानिद्देसो
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उपेक्खिन्द्रियसमुट्ठानं' ति परस्स हदयलोहितवण्णं पस्सित्वा चित्तं परियेसन्तेन चेतोपरियाणं थामगतं कातब्बं।
एवं थामगते हि तस्मि अनुक्कमेन सब् पि कामावचरचित्तं रूपावचरारूपावचरचित्तं च पजानाति, चित्ता चित्तमेव सङ्कमन्तो विना पि हदयरूपदस्सेन । वुत्तं पि चेतं अट्ठकथायं"आरुप्पे परस्स चित्तं जानितुकामो कस्स हदयरूपं पस्सति, कस्सिन्द्रियविकारं ओलोकेती ति? न कस्सचि । इद्धिमतो विसयो एस यदिदं यत्थ कत्थचि चित्तं आवजन्तो सोळसप्पभेदं चित्तं जानाति। अकताभिनिवेसस्स पन वसेन अयं कथा" ति।
७. सरागं वा चित्तं ति आदीसु पन अट्ठविधं लोभसहगतं चित्तं सरागं चित्तं ति वेदितब्बं । अवसेसं चतुभूमकं कुसलाब्याकतं चित्तं वीतरागं। द्वे दोमनस्सचित्तानि, द्वे विचिकिच्छुद्धच्चचित्तानी ति इमानि पन चत्तारि चित्तानि इमस्मि दुके सङ्गहं न गच्छन्ति । केचि पन थेरा तानि पि सङ्गण्हन्ति । दुविधं पन दोमनस्सचित्तं सदोसं चित्तं नाम। सब्बं पि चतुभूमकं कुसलाब्याकतं वीतदोसं। सेसानि दसाकुसलचित्तानि इमस्मि दुके सङ्गहं न गच्छन्ति। केचि पन थेरा तानि पि सङ्गण्हन्ति ।
८. समोहं वीतमोहं ति । एत्थ पन पाटिपुग्गलिकनयेन विचिकिच्छुद्धच्चसहगतद्वयमेव इस प्रकार दूसरे के हृदय के रक्त का रंग देखकर, चित्त का पता लगाते हुए चेत:पर्यायज्ञान को दृढ़ करना चाहिये।
उस ज्ञान के यों दृढ़ होने पर, क्रम से सभी कामावचर चित्तों एवं रूपावचर चित्तों को जानता है, चित्त से चित्त की ओर बढ़ते हुए, हृत्पिण्ड को देखे विना ही। एवं अट्ठकथा में यह कहा भी है-यह "आरूप्य में दूसरे के चित्त को जानने का अभिलाषी किसके हृत्पिण्ड (=हृदयरूप२) को देखता है? किसी के नहीं। यह ऋद्धिमान् का विषय है जो कि यह जिस किसी चित्त का विचार करते हुए, सोलह प्रकार के चित्त को जानता है। किन्तु (हृदय रूप में वर्तमान रक्त के सहारे परचित्तज्ञान का) यह वर्णन उनके लिये है जिन्होंने अभिनिवेश नहीं किया
७. सरागं वा चित्तं आदि में आठ प्रकार के लोभसहगत चित्त को सराग चित्त जानना चाहिये। शेष चातुर्भूमिक कुशल एवं अव्याकृत चित्त को वीतराग। दो दौर्मनस्य चित्त एवं दो विचिकित्सा एवं औद्धत्यचित्त-ये चार चित्त इस द्विक में संगृहीत नहीं हैं। किन्तु कुछ स्थविर उनका भी संग्रह करते हैं। दो प्रकार के दौर्मनस्य चित्त को सदोष चित्त कहते हैं। सभी चतुर्भूमिक कुशल एवं अव्याकृत को वीतदोष। शेष-दस कुशल चित्त इस द्विक में संगृहीत नहीं है। परन्तु कुछ स्थविर उन्हें भी संगृहीत करते हैं।
१. पाटिपुग्गलिकनयेना ति। आवेणिकनयेन। २. पृथ्वी आदि भूतों से बना हुआ भौतिक हृदय। यह 'हृदय वस्तु' का नहीं, अपितु हृदय की मांसपेशी
का सूचक है। ३. यहाँ इस शब्द का असाधारण प्रयोग किया गया है। प्रसङ्ग के अनुसार इसका अर्थ 'अभ्यास करना'
अधिक उपयुक्त होगा।