Book Title: Visuddhimaggo Part 02
Author(s): Dwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
Publisher: Bauddh Bharti

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Page 357
________________ ३३० विसुद्धिमग्गो आकासे वलाहका पि धूमसिखा पि चरन्ति । कप्पनिवासकसुरिये वत्तमाने विगतधूमवलाहकं आदासमण्डलं विय निम्मलं नभं होति, उपेत्वा पञ्च महानदियो' सेसकुन्नदीआदीसु उदकं सुस्सति। ____ ततो पि दीघस्स अद्भुनो अच्चयेन ततियो सुरियो पातुभवति, यस्स पातुभावा महानदियो पि सुस्सन्ति। ___ ततो पि दीघस्स अद्धनो अच्चयेन चतुत्थों सुरियो पातुभवति, यस्स पातुभावा हिमवति महानदीनं पभवा-सीहपपातो, हंसपातनो, कण्णमुण्डको, रथकारदहो, अनोत्तदहो, छद्दन्तदहो, कुणालदहो ति इमे सत्त महासरा सुस्सन्ति। ___ ततो पि दीघस्स अद्भुनो अच्चयेन पञ्चमो सुरियो पातुभवति, यस्स पातुभावा अनुपुब्येन महासमुद्दे अङ्गलिपब्बतेमनमत्तं पि उदकं न सण्ठाति। ततो पि दीघस्स अद्धनो अच्चयेन छट्ठो सुरियो पातुभवति, यस्स पातुभावा सकलचक्कवाळं एकधूमं होति, परियादिण्णसिमेहं धूमेन। यथा चिदं, एवं कोटिसतसहस्सचक्कवाळानि पि। २७. ततो पि दीघस्स अद्भुनो अच्चयेन सत्तमो सुरियो पातुभवति, यस्स पातुभावा सकलचक्कवाळं एकजालं होति सद्धिं कोटिसतसहस्सचक्कवाळेहि। योजनसतिकादिभेदानि सिनेरुकूटानि पि पलुज्जित्वा आकासे येव अन्तरधायन्ति। सा अग्गिजाला उट्ठहित्वा चातुमहाराजिके गण्हाति। तत्थ कनकविमान-रतनविमान-मणिविमानानि झापेत्वा तावतिंसके समान निर्मल होता है। पाँच महानदियों को छोड़कर, शेष छोटी नदियों का जल सूख जाता है। उसके भी बहुत समय बाद तृतीय सूर्य का प्रादुर्भाव होता है, जिसके प्रादुर्भाव से महानदियाँ भी सूख जाती हैं। उसके भी बहुत समय बाद चतुर्थ सूर्य का प्रादुर्भाव होता है, जिसके प्रादुर्भाव से हिमालय से निकलने वाली महानदियों के स्रोत–सिंहप्रपात, हंसपातन, कर्णमुण्डक, रथकार ह्रद, अनवतप्त हृद, षड्दन्त हृद एवं कुणालह्रद-ये सात महासर सूख जाते हैं। उसके भी बहुत समय बाद पञ्चम सूर्य का प्रादुर्भाव होता है, जिसके प्रादुर्भाव से धीरेधीरे (जल सूखने से) महासमुद्र में अँगुलि का पोर गीला करने के लिये भी जल नहीं रह जाता। उसके भी बहुत सय बाद षष्ठ सूर्य का प्रादुर्भाव होता है, जिसके प्रादुर्भाव से समस्त चक्रवाल वाष्प (भाप) मात्र रह जाता है; क्योंकि इसकी नमी वाष्प में बदल जाती है। एवं जैसे यह, वैसे ही दस खरब चक्रवाल भी। २७. उसके भी बहुत समय बाद सप्तम सूर्य का प्रादुर्भाव होता है, जिसके प्रादुर्भाव से समस्त चक्रवाल दस खरब चक्रवालों के साथ अग्नि की ज्वाला में बदल जाता है। सौ योजन वाले सुमेरु के शिखर भी टूट-टूटकर आकाश में ही अन्तर्हित हो जाते हैं। वह अग्निज्वाला (लपट) १. गङ्गा, यमुना, सरभू, अचिरवती, मही ति इमा पञ्च महानदियो। २. परियादिन्नसिनेहं ति। परिक्खीणसिनेहं ।

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