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अभिज्ञानिद्देसो
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अतीतभवे अत्तनो नामगोत्तानुस्सरणवसेन वुत्तं । सचे पन तस्मि काले अत्तनो वण्णसम्पत्तिं वा लूखपणीतजीविकभावं वा सुखदुक्खबहुलतं वा अप्पायुकदीघायुकभावं वा अनुस्सरितुकामो होति, तं पि अनुस्सरति येव। तेनाह-"एवंवण्णो ...पे०...एवमायुपरियन्तो" ति।
४३. तत्थ एवंवण्णो ति। ओदातो वा, सामो वा। एवमाहारो ति। सालिमंसोदनाहारो वा, पवत्तफलभोजनो वा। एवं सुखदुक्खपटिसंवेदी ति। अनेकप्पकारेन कायिकचेतसिकानं सामिसनिरामिसादिप्पभेदानं वा सुखदुक्खानं पटिसंवेदी। एवमायुपरियन्तो ति। एवं वस्ससतपरिमाणायुपरियन्तो वा चतुरासीतिकप्पसहस्सायुपरियन्तो वा।
सो ततो चुतो अमुत्र उदपादिं ति। सो अहं ततो भवतो योनितो गतितो विज्ञाणट्ठितितो सत्तावासतो सत्तनिकायतो वा चुतो पुन अमुकस्मि नाम भवे योनिया गतिया विज्ञाणट्ठितिया सत्तावासे सत्तनिकाये वा उदपादि। तत्रापासिं ति। अथ तत्रापि भवे योनिया गतिया विज्ञाणद्वितिया सत्तावासे सत्तनिकाये वा पुन अहोसिं। एवंनामो ति आदि । वुत्तनयमेव ।
४४. अपि च-यस्मा, 'अमुत्रासिं' ति इदं अनुपुब्बेन आरोहन्तस्स यावदिच्छिकं अनुस्सरणं, 'सो ततो चुतो' ति पटिनिब्बत्तन्तस्स पच्चवेक्खणं, तस्मा 'इधूपपन्नो' ति इमिस्सा इधूपपत्तिया अनन्तरमेवस्स उपपत्तिट्ठानं सन्धाय, अमुत्र उदपादि ति इदं वुत्तं ति वेदितब्बं । 'तत्रापासिं' ति एवमादि पनस्स तत्र इमिस्सा उपपत्तिया अनन्तरे उपपत्तिट्ठाने नामगोत्तादीनं अनुस्सरणदस्सनत्थं वुत्तं । सो ततो चुतो इधूपपन्नो ति। स्वाहं ततो अनन्तरूपपत्तिट्ठानतो चुतो इध असुकस्मि नाम खत्तियकुले वा ब्राह्मणकुले वा निब्बत्तो ति।
नाम एवं गोत्र-का अनुस्मरण करने के विषय में कहा गया है। यदि उस समय के अपने रंग रूप, निर्धनता-सम्पन्नता, सुख-दुःख के आधिक्य का या अल्पायु अथवा दीर्घायु होने का अनुस्मरण करता है; इस लिये कहा गया है-"इस वर्ण का...पूर्ववत्...इतनी आयुवाला था।"
४३. यहाँ, एवंवण्णो-गोरा या काला। एवमाहारो-शालि के भात एव मांस का आहार करने वाला या (पककर स्वयं ही) गिरे हुए फलों का आहार करने वाला। एवंसुखदुक्खपटिसंवेदी-अनेक प्रकार के कायिक वाचिक या सामिष निरामिष के प्रभेदों वाले सुख दुःख का प्रतिसंवेदी। (पाँच काम गुणों से युक्त सुख वेदना या दुःख वेदना को सामिष एवं तद्विपरीत को निरामिष कहा जाता है।) एवमायुपरियन्तो-सौ वर्ष की आयु वाला या चौरासी हजार कल्प की आयु वाला। सो ततो चुतो अमुत्र उदपादि-वह मैं उस भव, योनि, गति, विज्ञानस्थिति, सत्त्वावास या सत्त्वनिकाय से च्युत होकर पुनः अमुक भव, योनि, गति, विज्ञानस्थिति, सत्त्वावास या सत्त्वनिकाय में उत्पन हुआ। एवंनामो-उक्त प्रकार से ही।
४४. इसके अतिरिक्त, क्योंकि 'अमुत्रासिं' (वहाँ था)-यह क्रम से ऊपर की ओर (स्मृति को ले) जाने वाले का यथेच्छ अनुस्मरण है, एवं 'सो ततो चुतो' (वह मैं वहाँ से च्युत होकर)यह प्रतिनिवृत्त होने वाले का अनुस्मरण है, अत: जानना चाहिये कि 'इधूपपत्रो' (यहाँ उत्पन्न हुआ)-यों इसकी यहाँ उत्पत्ति (बतलाने) के बाद, उसकी उत्पत्ति के स्थान को लक्ष्य करके 'अमुत्र उदपादि' (वहाँ उत्पन्न हुआ)-ऐसा कहा गया है। 'तत्रापासिं' (वहाँ पुनः उत्पन हुआ था)-आदि को इसकी वहाँ इस उत्पत्ति के बाद (पुनः) उत्पन्न होने के स्थान में नाम-गोत्र आदि