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अभिज्ञानिद्देसो
३२३ उक्कापभासदिसं, अग्गसावकानं ओसधितारकप्पभासदिसं, पच्चेकबुद्धानं चन्दप्पभासदिसं, बुद्धानं रस्मिसहस्सपतिमण्डितसरदसुरियमण्डलसदिसं हुत्वा उपट्ठाति ।
१५. तित्थियानं च पुब्बेनिवासानुस्सरणं अन्धानं यट्ठिकोटिगमनं? वियं होति। पकतिसावकानं दण्डकसेतुगमनं२ विय। महासावकानं जङ्घसेतुगमनं३ विय। अग्गसावकानं सकटसेतुगमनं विय। पच्चेकबुद्धानं महाजङ्घमग्गगमनं५ विय। बुद्धानं महासकटमग्गगमनं६ विय।
इमस्मि पन अधिकारे७ सावकानं पब्बेनिवासानुस्सरणं अधिप्पेतं। तेन वृत्तं"अनुस्सरती ति खन्धपटिपाटिवसेन चुतिपटिसन्धिवसेन वा अनुगन्त्वा अनुगन्त्वा सरती'" ति।
१६. तस्मा एवं अनुस्सरितुकामेन आदिकम्मिकेन भिक्खुना पच्छाभत्तं पिण्डपातपटिक्कन्तेन रहोगतेन पटिसल्लीनेन पटिपाटिया चत्तारि झानानि समापज्जित्वा अभिज्ञापादक
समान, महाश्रावकों का उल्का (मशाल) के प्रकाश के समान, अग्रश्रावकों का शुक्र तारे के प्रकाश के समान, प्रत्येकबुद्धों का चन्द्रमा के प्रकाश के समान, बुद्धों का सहस्र रश्मियों से प्रतिमण्डित, शरत्कालीन सूर्यमण्डल के समान उपस्थित होता है।
- १५. एवं तीर्थकों का पूर्वनिवासानुस्मरण (स्कन्धक्रम को न छोड़ने के कारण) लाठी की नोक के सहारे अन्धों के गमन के समान होता है। प्रकृतिश्रावकों का (एक ही) डण्डे से बनाये गये पुल द्वारा गमन के समान । महाश्रावकों का पैदल चलने योग्य पुल से जाने के समान । अग्रश्रावकों का उस पुल द्वारा गमन के समान, जिस पर बैलगाड़ी चल सकती हो। प्रत्येकबुद्धों का ऐसे पुल द्वारा गमन के.समान, जिस पर बहुत लोग पैदल चल सकते हों। बुद्धों का ऐसे पुल द्वारा गमन के समान, जिस पर बहुत सी बैलगाड़ियाँ चल सकती हों।
___किन्तु इस अधिकार में श्रावकों का ही पूर्वनिवासानुस्मरण अभिप्रेत है। इसलिये कहा गया है-“अनुस्मरण करता है, अर्थात् स्कन्ध-क्रम के अनुसार या च्युति-प्रतिसन्धि के अनुसार अनुस्मरण करता है।"
१६. अतः इस प्रकार अनुस्मरण के अभिलाषी आदिकर्मिक भिक्षु को भोजन के पश्चात्,
१. यट्ठिकोटिगमनं विय। खन्धपटिपाटिया अमुञ्चन्तो। २. कुत्रदीनं अतिक्कमनाय एकेनेव रुवखदण्डेन कतसङ्कमो दण्डकसेतु। ३. चतूहि, पञ्चहि वा जनेहि गन्तुं सक्कुणेय्यो फलके अत्थरित्वा आणियो कोठूत्वा कतसङ्गमो जङ्घसेतु।
जङ्घसत्थस्स गमनयोग्गो सङ्कमो जङ्घसेतु जङ्घमग्गो विय। ४. सकटस्स गमनयोग्गो सङ्कमो सकटसेतु सकटमग्गो विय। ५. महता जङ्घसत्थेन गन्तब्बमग्गो महाजङ्घमग्गो। ६. बहूहि वीसाय वा तिंसाय वा सकटेहि एकझं गन्तब्बमग्गो महासकटमग्गो। ७. इमस्मि पन अधिकारे ति। "चित्तं पञ्चं च भावयं" (सं० नि० १/२५) ति चित्तसीसेन सावकस्स
निद्दिटुसमाधिभावनाधिकारे। . ८. “चित्तं पञ्जं च भावयं" (सं० नि० १/२५) में श्रावकों के लिये चित्त शीर्षक से निर्दिष्ट 'समाधिभावना'
नामक अधिकार में।