Book Title: Visuddhimaggo Part 02
Author(s): Dwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
Publisher: Bauddh Bharti

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Page 336
________________ इद्धिविधनिद्देसो ३०९ करोन्ती" ति। "महासमुद्दो कुहि, भन्ते" ति? "ननु, आवुसो, अन्तरा एकं नीलमातिकं अतिक्कमित्वा आगतत्था" ति? "आम भन्ते, महासमुद्दो पन महन्तो" ति। "आवुसो, महल्लकत्थेरा नाम महन्तं पि खुद्दकं करोन्ती" ति। (३) यथा चायं, एवं तिस्सदत्तत्थेरो पि सायन्हसमये न्हायित्वा कतुत्तरासङ्गो "महाबोधिं वन्दिस्सामी" ति चित्ते उप्पन्ने सन्तिके अकासि। (४) सन्तिकं पन गहेत्वा को दूरमकासी ति? भगवा। भगवा हि अत्तनो च अङ्गलिमालस्स च अन्तरं सन्तिकं पि दूरमकासी ति। ४३. अथ को बहुकं थोकं अकासी ति? महाकस्सपत्थेरो। राजगहे किर नक्खत्तदिवसेरे पञ्चसता कुमारियो चन्दपूवे गहेत्वा नक्खत्तकीळनत्थाय गच्छन्तियो भगवन्तं दिस्वा किञ्चि नादंसु। पच्छतो आगच्छन्तं पन थेरं दिस्वा "अम्हाकं थेरो एति, पूर्व दस्सामा" ति सब्बा पूवे गहेत्वा थेरं उपसङ्कमिंसु। थेरो पत्तं नीहरित्वा सब्बं एकपत्तपूरमत्तमकासि। भगवा थेरं आगमयमानो पुरतो निसीदि। थेरो आहरित्वा भगवतो अदासि। कर कहा-"आयुष्मन्, आओ, भिक्षाटन के लिये चलें", एवं पृथ्वी को संक्षिप्त कर पाटलिपुत्र पहुँचे। भिक्षुओं ने पूछा- "भन्ते, यह कौन-सा नगर है?" "आयुष्मन्! पाटलिपुत्र है।" "भन्ते! पाटलिपुत्र तो दूर है?" "आयुष्मन्! वयोवृद्ध स्थविर दूर को भी पास कर देते हैं।" "भन्ते! महासमुद्र कहाँ रह गया?" । "आयुष्मन्! बीच में एक नीले जल वाली नाली को पार करके नहीं आये हो?" "हाँ, भन्ते! किन्तु महासमुद्र तो बहुत बड़ा होता है?" "आयुष्मन्, वयोवृद्ध स्थविर बड़े को भी छोटा कर देते हैं।" (३). एवं इसी प्रकार तिष्यदन्त स्थविर ने भी जब सन्ध्या के समय स्नान करके उत्तरासङ्ग ओढ़ा, तब 'महाबोधि की वन्दना करूँ'-ऐसी इच्छा उत्पन्न होने पर (महाबोधि को) समीप कर लिया। (४) समीप को दूर किसने किया? भगवान् ने। भगवान् ने स्वयं अङ्गलिमाल के बीच की समीपता को दूरी में बदल दिया। ४३. बहुत को थोड़ा किसने किया? महाकश्यप स्थविर ने। राजगृह में किसी उत्सव के दिन पाँच सौ कुमारियाँ चन्द्रमण्डल के समान गोल गोल पुओं को लेकर उत्सव मनाने के लिये जा रही थीं। भगवान् को देखकर (भी) सम्भवत: उन्हें न पहचानने के कारण कुछ नहीं दिया। किन्तु पीछे से स्थविर को आते देखकर-'हमारे स्थविर आ रहे हैं'-यों सोचकर सब पुओं को लेकर स्थविर के पास पहुंचीं। स्थविर ने (भिक्षा पाने के लिये) भिक्षापात्र निकाला एवं सब (पुओं) १. नीलमातिकं ति। नीलवण्णोदकमातिकं। २. सन्तिके आकासी ति। तथा चित्तुष्पत्तिसमनन्तरमेव पथवि, समुदं च संखिपित्वा महाबोधिसन्तिके अकासि। ३. नक्खत्तदिवसे ति। महदिवसे। ४. चन्दपूवे ति। चन्दसदिसे चण्दमण्डलाकारे पूवे।

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