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समाधिनिद्देसो कथं अपरिपक्कतो? सो पनायमाहारो एवरूपे ओकासे निधानमुपगतो याव अपरिपक्को होति, ताव तस्मि येव यथावुत्तप्पकारे परमन्धकारतिमिसे नानाकुणपगन्धवासितपवनविचरिते अतिदुग्गन्धजेगुच्छे पदेसे यथा नाम निदाघे अकालमेघेन अभिवुटुम्हि चण्डालगामद्वारआवाटे पतितानि तिणपण्णकिलञ्जखण्डअहिकुक्कुरमनुस्सकुणपादीनि सुरियातपेन सन्तत्तानि फेणबुब्बुळकाचितानि तिट्ठन्ति । एवमेव तंदिवसं पि हिय्यो पि ततो पुरिमे दिवसे पि अझोहटो सब्बो एकतो हुत्वा सेम्हपटलपरियोनद्धो कायग्गिसन्तापकुथितकुथनसञ्जातफेणपुप्फुळकाचितो परमजेगुच्छभावं उपगन्त्वा तिट्ठती ति। एवं अपरिपक्कतो पटिक्कूलता पच्चवेक्खितब्बा। (६)
कथं परिपक्कतो? सो तत्तकायग्गिना परिपक्को समानो न सुवण्णरजतादिधातुयो विय सुवण्णरजतादिभावं उपगच्छति । फेणुबुब्बुळके पन मुञ्चन्तो सहकरणियं पिंसित्वा नाळिके पक्खित्तपण्डुमत्तिका विय करीसभावं उपगन्त्वा पक्कासयं, मुत्तभावं उपगन्त्वा मुत्तवत्थिं च पूरेती ति। एवं परिपक्कतो पटिक्कूलता पच्चवेक्खितब्बा। (७)
___कथं फलतो? सम्मा परिपच्चमानो च पनायं केसलोमनखदन्तादीनि नानाकुणपानि निप्फादेति असम्मा परिपच्चमानो ददु-कण्डु-कच्छु-कुट्ठ-किलास-सोस-कासातिसारप्पभुतीनि रोगसतानि, इदमस्स फलं ति। एवं फलतो पटिक्कूलता पच्चवेक्खितब्बा। (८)
कथं निस्सन्दतो? अज्झोहरियमानो चेस एकेन द्वारेन पविसित्वा निस्सन्दमानो "अक्खिम्हा अक्खिगूथको, कण्णम्हा कण्णगूथको" ति आदिना पकारेन अनेकेहि द्वारेहि
खाया गया होता है, तो बीस-बीस...सौ वर्षों से न धोये गये शौचालय जैसे खाली स्थान में रहता है। यों निधान से प्रतिकूलता का प्रत्यवेक्षण करना चाहिये। (५)
अपरिपक्क से कैसे? वह आहार ऐसे खाली स्थान में जाकर जब तक ठीक तरह से पचता नहीं है, तब तक उस पूर्वोक्त प्रकार के ही निविड (घोर) अन्धेरे में, जहाँ अनेक प्रकार की दुर्गन्धों से वासित वायु घूमती रहती है, ऐसे अतिदुर्गन्धित, जुगुप्सित प्रदेश में उस दिन या कल, परसों के भी खाये हुए (आहार) के साथ एक में मिलकर, कफ की तरह से चिपका हुआ, शरीर के ताप से खौल-खौलकर फेन के बुलबुले छोड़ता हुआ अत्यन्त जुगुप्सित रूप प्राप्त करता है। यों अपरिपक्व से प्रतिकूलता का प्रत्यवेक्षण करना चाहिये। (६)
परिपक्व से कैसे? वह शरीर-ताप से पचने पर सोने-चाँदी आदि धातुओं के समान (अग्नि में तपाये जाने से परिशुद्ध हुए) सोने-चाँदी आदि का रूप नहीं पाता, अपितु फेन के बुलबुले छोड़ता हुआ, लोढ़े से पीसकर किसी नली में भरी गयी पीली मिट्टी के समान, मल के रूप में पक्वाशय को एवं मूत्र के रूप में मूत्र की थैली को भरता है। यों परिपक्क से प्रतिकूलता का प्रत्यवेक्षण करना चाहिये। (७)
__फल से कैसे? यह जब अच्छी तरह पच जाता है, तब केश, रोम, नख, दाँत आदि नाना गन्दगियों को उत्पन्न करता है; जब अच्छी तरह नहीं पचता, तब दाद, खाज, चेचक, कुष्ठ, प्लेग, सूखारोग, खाँसी आदि सैकड़ों रोगों को। यह इसका फल है। यों फल से प्रतिकूलता का प्रत्यवेक्षण करना चाहिये। (८)
निष्यन्द (निकासी) से कैसे? खाते समय यह एक द्वार से प्रवेश कर, निकलते समय