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विसुद्धिमग्गो पि इद्धिविकुब्बनं नाम भारो, सत्तेसु सहस्सेसु वा एको व सक्कोति। विकुब्बनप्पत्तस्सा पि खिप्पनिसन्तिभावो' नाम भारो, सतेसु सहस्सेसु वा एको न खिप्पनिसन्ति होति।
थेरम्बत्थले महारोहणगुत्तत्थेस्स गिलानुपट्टानं आगतेसु तिंसमत्तेसु इद्धिमन्तसहस्सेसु उपसम्पदाय अट्ठवस्सिको रक्खितत्थेरो विय। तस्सानुभावो पठवीकसिणनिद्देसे वुत्तो येव। तं पनस्सानुभावं दिस्वा थेरो आह-"आवुसो, सचे रक्खितो नाभविस्स सब्बे गरहप्पत्ता अस्साम–'नागराजानं रक्खितुं नासक्खिसू' ति। तस्मा अत्तना गहेत्वा विचरितब्बं आवुधं नाम मलं सोधेत्वा व गहेत्वा विचरितुं वट्टती' ति। ते थेरस्स ओवादे ठत्वा तिंससहस्सा पि भिक्खू खिप्पनिसन्तिनो अहेसुं।
खिप्पनिसन्तिया पि च सति परस्स पतिट्ठाभावो भारो, सतेसु सहस्सेसु वा एको व होति। गिरिभण्डवाहनपूजाय मारेन अङ्गारवस्से पवत्तिते आकासे पठविं मापेत्वा अङ्गारवस्सपरित्तायको थेरो विय।
५. बलवपुब्बयोगानं पन बुद्ध-पच्चेकबुद्ध-अग्गसावकादीनं विना पि इमिना वुत्तप्पकारेन भावनानुक्कमेन अरहत्तपटिलाभेनेव इदं च इद्धिविकुब्बनं अजे च पटिसम्भिदादिभेदा गुणा इज्झन्ति।
लिये चौदह प्रकार से चित्त का दमन करना कठिन है, सौ या हजार में से कोई एक ही कर पाता है। जिसने चौदह प्रकार से चित्त का दमन कर लिया है, उसके लिये भी यह ऋद्धिविकुर्वण कठिन है; सौ या हजार में कोई एक ही कर पाता है। जिसे विकुर्वण प्राप्त हो गया है, उसके लिये भी शीघ्रता के साथ सावधानीपूर्वक ध्यान देना या निरीक्षण करना (=खिप्पनिसन्ति= क्षिप्रनिःशान्ति) कठिन है, सौ या हजार में से कोई एक क्षिप्र-निशान्तिक होता है। स्थविराम्बस्थल (थेरम्बत्थल) में महारोहणगुप्त स्थविर की बीमारी में देखरेख के लिये आये हुए तीन हजार ऋद्धिमानों के बीच उपसम्पदा के आधार पर आठवर्षीय रक्षित स्थविर के समान। उनके चमत्कार (आनुभाव) का उल्लेख पहले पृथ्वीकसिणनिर्देश में किया ही जा चुका है।
उनका असाधारण कार्य देखकर स्थविर ने कहा-"आयुष्मन्, यदि रक्षित न होते तो (हम) सबको इस बात के लिये लज्जित होना पड़ता-'हम नागराज की रक्षा नहीं कर सके। इसलिये जैसे योद्धाओं को अपने अस्त्र-शस्त्रों की जंग (लोहकिट्ट) छुड़ाकर ही विचरण करना चाहिये, वैसे ही हमें भी (पूर्णरूप से समर्थ होकर ही) विचरण करना चाहिये।' स्थविर के कथन पर ध्यान देकर वे तीस हजार भिक्षु भी क्षिप्रनिशान्तिक हो गये।
तथा क्षिप्रनिशान्तिक हो जाने पर भी दूसरों का सहायक होना कठिन है। सौ या हजार में से कोई एक ही होता है, गिरिभाण्डवाहन-पूजा के समय मार द्वारा अङ्गार बरसाये जाने पर आकाश में पृथ्वी की रचना कर अङ्गारों की वर्षा से रक्षा करने वाले स्थविर के समान।।
१. खिप्पं निसन्ति-निसामनं झानचक्खुना पठवीकसिणादिझानारम्मणस्स दस्सनं एतस्सा ति खिप्पनिसन्ति,
सीघतरं झानं समापज्जिता, तस्स भावो खिप्पनिसन्तिभावो। २. अम्बतरुनिचितं महामहिन्दत्थेरादीहि सीहलदीपे ओतिण्णट्ठानं थेरम्बत्थलं। ३. यह आम्रवन जहाँ सिंहलद्वीप जाते समय महामहेन्द्रस्थविर आदि ठहरे थे।