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इद्धिविधनिद्देसो
२७३ आणविप्फारा इद्धि...पे०...अरहत्तमग्गेन सब्बकिलेसानं पहानढो इज्झती ति आणविप्फारा इद्धि। आयस्मतो बक्कुलस्स आणविष्फारा इद्धि। आयस्मतो सङ्किच्चस्स आणविप्फारा इद्धि। आयस्मतो भूतपालस्स आणविप्फारा इद्धी" (खु० नि० ५/४७४) ति।
तत्थ आयस्मा बक्कुलो दहरो व मङ्गलदिवसे नदिया नहापियमानो धातिया पमादेन सोते पतितो। तमेनं मच्छो गिलित्वा बाराणसीतित्थं अगमासि। तत्र तं मच्छबन्धो गहेत्वा सेटिभरियाय विक्किणि। सा मच्छे सिनेहं उपादेत्वा 'अहमेव नं पचिस्सामी' ति फालेन्ती मच्छकुच्छियं सुवण्णबिम्बं विय दारकं दिस्वा 'पुत्तो मे लद्धो' ति सोमनस्सजाता अहोसि। इति मच्छकुच्छियं अरोगभावो आयस्मतो बक्कुलस्स पच्छिमभविकस्स तेन अत्तभावेन पटिलभितब्बअरहत्तमग्गजाणानुभावेन निब्बत्तत्ता जाणविप्फारा इद्धि नाम। वत्थु पन वित्थारेन कथेतब्बं । (क)
सङ्किच्चत्थरस्स पन गब्भगतस्सेव माता कालमकासि। तस्मा चितकं आरोपेत्वा सूलेहि विझित्वा झापियमानाय दारको सूलकोटिया अक्खिकूटे पहारं लभित्वा सद्दमकासि। ततो 'दारको जीवती' ति ओतारेत्वा कुच्छि फालेत्वा दारकं अय्यिकाय अदंसु। सो ताय पटिजग्गितो
है" (खु० नि०५/४७३)-यों आयी हुई ऋद्धि काया के भीतर अन्य ही मनोमय काय की निष्पत्ति के रूप में प्रवृत्त होने से मनोमय ऋद्धि कहलाती है। (३)
ज्ञानविस्तार ऋद्धि-ज्ञानोत्पत्ति से पूर्व अर्हन्मार्ग-ज्ञान की उत्पत्ति के पूर्व या विपश्यनाक्षण में, या उससे भी पूर्व, अन्तिम भविक द्वारा प्रतिसन्धिग्रहण करने के समय से या पश्चात् स्कन्धपरिनिर्वाण के पश्चात् या उसी क्षण मार्गोत्पत्ति के समय में ज्ञान के प्रभाव से उत्पन्न विशिष्टता को ज्ञानविस्तार ऋद्धि कहा जाता है। क्योंकि यह कहा गया है-"यह अनित्य की अनुपश्यना द्वारा नित्यसंज्ञा के प्रहाण के रूप में सिद्ध होती है, अतः ज्ञानविस्तारऋद्धि। आयुष्मान् वक्कुल एवं आयुष्मान् सांकृत्य की तथा आयुष्मान् भूतपाल की ज्ञानविस्तारऋद्धि" (खु०५/४७४)।
इनमें आयुष्मान् वकुल जब छोटे बालक थे, तभी किसी शुभ दिन नदी में नहलाये जाते समय धात्री (धाय) की असावधानी से प्रवाह में गिर गये। उन्हें किसी मछली ने निगल लिया, वह वाराणसी तीर्थ में चली आयी। उसे किसी मछुआरे ने पकड़ कर सेठ की भार्या को बेंच दिया। उसने उस मछली के प्रति रुचि लेते हुए, 'इसे मैं ही पकाऊँगी'-ऐसा सोचकर जब (उसका) पेट चीरा तो मछली के पेट में स्वर्णबिम्ब के समान (तेजस्वी) शिशु को देखकर 'मुझे पुत्र मिल गया' यों सोचकर प्रसन्न हुई। यों, आयुष्मान् वक्कुल के पिछले जन्म में मछली के पेट में उनका सकुशल रहना 'ज्ञान-विस्तार ऋद्धि' है; क्योंकि वह उस जन्म में उनके द्वारा प्राप्त किये जाने वाले अर्हत्-मार्ग-ज्ञान के प्रभाव से उत्पन्न हैं। कथा विस्तार से कही जानी चाहिये। (क)
सांकृत्य स्थविर जब गर्भस्थ थे, तभी माता कालकवलित हो गयी। जब उसे चिता पर रखकर शूलों से कोंच-कोच कर जलाया जा रहा था, तब शूल की नोंक से आँख पर चोट पहुँचने से (गर्भस्थ) शिशु ने शब्द किया। तब 'बच्चा जीवित है' यों सोचकर (लोगों ने शव को चिता पर से) उतारकर, पेट चीरकर बच्चे को उसकी दादी (पितामही). को दे दिया। वह उसके द्वारा पाल-पोस कर बड़ा किया गया एवं उसने प्रव्रजित होकर प्रतिसम्भिदाओं के साथ अर्हत्त्व प्राप्त