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विसुद्धिमग्गो
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निस्सन्दति । अज्झोहरणसमये चेस महापरिवारेना पि अज्झोहरियति । निस्सन्दसमये पन उच्चारपस्सावादिभावं उपगतो एककेनेव नीहरीयति । पठमदिवसे च नं परिभुञ्जन्तो हट्ट हो पिहोति उदग्गुदग्गो प्रीतिसोमनस्सजातो । दुतियादिवसे निस्सन्देन्तो पिहितनासिको होति विकुरितमुखो जेगुच्छी मङ्कभूतो । पठमदिवसे च नं रत्तो गिद्धो गधितो मुच्छितो पि अज्झोहरित्वा दुतियदिवसे एकरत्तिवासेन विरतो अट्टीयमानो हरायमानो जिगुच्छमानो नीहरति । तेनाहु पोराणा
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'अन्नं पानं खादनीयं भोजनं च एकद्वारेन पविसित्वा नवद्वारेहि अन्नं पानं खादनीयं भोजनं च महारहं । भुञ्जति सपरिवारो, निक्खामेन्तो निलीयति ॥ अन्नं पानं खादनीयं भोजनं च महारहं । भुञ्जति अभिनन्दन्तो, निक्खामेन्तो जिगुच्छति ॥ अन्नं पानं खादनीयं भोजनं च महारहं । एकरत्तिपरिवासा सब्बं भवति पूतिकं" ति ॥
महारहं ।
सन्दति ॥
एवं निस्सन्दन्तो पटिक्कूलता पच्चवेक्खितब्बा । (९)
कथं सम्मक्खनतो ? परिभोगकाले पि चेस हत्थ - ओट्ठ- जिव्हा - तालूनि सम्मक्खेति । तानि तेन सम्मक्खितत्ता पटिक्कूलानि होन्ति, यानि धोतानि पि गन्धहरणत्थं पुनप्पुनं धोवितब्बानि
है ॥
आँखों से आँख का कीचड़, कानों से कान का मैल आदि प्रकार से अनेक द्वारों से निकलता है । एवं यह खाये जाते समय महापरिवार के साथ भी खाया जाता है; किन्तु निकलते समय मलमूत्र आदि के रूप में हर एक द्वारा अलग अलग से निकाला जाता है। तथा पहले दिन इसे खाते समय (व्यक्ति) प्रसन्न, गद्गद होता है, प्रीति-सौमनस्य भी उत्पन्न होता है। दूसरे दिन निकालते समय नाक बन्द करता है, मुँह बिचकाता है, घृणा करता है, चुप रहता है। पहले दिन राग एवं लोभ के साथ, उसे खाने के लिये टूट पड़ता है, है खाता है। दूसरे दिन (पेट में) रात भर रहने मात्र से ( इसके प्रति) विरक्त, हैरान परेशान -सा होते हुए निकालता है।
इसीलिये प्राचीनों ने कहा है- "अन्न, पान, खाद्य (के रूप में) उत्तम भोजन एक द्वार से प्रवेश कर नव द्वारों से निकलता है ॥
अन्न-पान, खाद्य उत्तम भोजन को सपरिवार खाता है, निकालते समय छिपकर निकालता
करता है ॥
अन्न-पान, खाद्य उत्तम भोजन की प्रशंसा करते हुए खाता है, निकालते समय घृणा अनुभव
अन्न-पान, खाद्य उत्तम भोजन (पेट में) रात भर रहने से सबका सब सड़ जाता है | " यों निष्यन्द से प्रतिकूलता का प्रत्यवेक्षण करना चाहिये । (९)
संप्रक्षण (चिपकना, लिपटना) से कैसे ? खाये जाते समय भी यह हाथ, ओंठ, जीभ, तालु आदि से चिपकता है । वे उससे लिपटे होने से गन्दे हो जाते हैं। जिन्हें धोने के बाद भी