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समाधिनिद्देसो
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'मयि केसा जाता' ति, नपि केसा जानन्ति–'मयं सीसकटाहपलिवेठनचम्मे जाता' ति। अचमकं आभोगपच्चवेक्खणरहिता एते धम्मा। इति केसा नाम इमस्मि सरीरे पाटियेक्को कोट्ठासो अचेतनो अब्याकतो सुञो निस्सत्तो थद्धो पथवीधातू ति।।
___ लोमा सरीरवेठनचम्मे जाता। तत्थ यथा सुझगामट्ठाने जातेसु दब्बतिणकेसु न सुझगामट्ठानं जानाति–'मयि दब्बतिणकानि जातानी' ति, न पि दब्बतिणकानि जानन्ति'मयं सुझगामट्ठाने जातानी ति; एवमेव न सरीरवेठनचम्मं जानाति–'मयि लोमा जाता' ति, न पि लोमा जानन्ति–'मयं सरीरवेठनचम्मे जाता' ति। अञमळ आभोगपच्चवेक्खणरहिता एते धम्मा। इति लोमा नाम इमस्मि सरीरे पाटियेक्को कोट्ठासो अचेतनो अव्याकतो सुझो निस्सत्तो थद्धो पथवीधातू ति। __नखा अङ्गुलीनं अग्गेसु जाता । तत्थ, यथा कुमारकेसु दण्डकेहि मधुयट्ठिके विज्झित्वा कीळन्तेसु न दण्डका जानन्ति–'अम्हेसु मधुयट्ठिका ठपिता' ति, न पि मधुयट्ठिका जानन्ति'मयं दण्डकेसु ठपिता' इति; एवमेव न अङ्गलियो जानन्ति–'अम्हाकं अग्गेसु नखा ठपिता' इति, न पि नखा जानन्ति–'मयं अङ्गलीनं अग्गेसु जाता' ति। अज्ञमकं आभोग-पच्चवक्खणरहिता एते धम्मा। इति नखा नाम इमस्मि सरीरे पाटियेक्को कोट्ठासो अचेतनो अव्याकतो सुझो निस्सत्तो थद्धो पथवाधातू ति।
दन्ता हनुकट्ठिकेसु जाता। तत्थ, यथा वड्डकीहि पासाणउदुक्खलेसु केनचिदेव को परिवेष्टित करने वाला चर्म नहीं जानता कि "मुझमें केश उत्पन्न है"; न ही केश जानते हैं"हम कपाल को परिवेष्टित करने वाले चर्म में उगे हैं।" ये धर्म एक दूसरे के बारे में सोच समझ या प्रत्यवेक्षण से रहित हैं। इस प्रकार केश इस शरीर का एक विशिष्ट भाग है, जो अचेतन, अव्याकृत, शून्य निस्सत्त्व, स्तब्ध (ठोस) पृथ्वीधातु है।
रोम-रोम शरीर को ढंकने वाले चर्म से उत्पन्न हैं। जैसे कि किसी (जन-) शून्य ग्राम में उत्पन्न दूब (दूर्वा) के बारे में शून्य ग्राम-प्रदेश नहीं जानता–'मुझमें दूब उगी हैं", और न दूब ही जानती है-'मैं शून्य प्रदेश में ऊगी हूँ'; वैसे ही न तो शरीर को ढंकने वाला चर्म जानता है-"मुझमें रोम उत्पन्न हैं", न ही रोम जानते हैं-"हम शरीर को ढंकने वाले चर्म में उत्पन्न हैं।" ये धर्म परस्पर सोच समझ एवं प्रत्यवेक्षण से रहित हैं। इस प्रकार रोम इस शरीर का एक विशिष्ट भाग है, जो अचेतन, अव्याकृत, शून्य, निःसत्त्व, ठोस पृथ्वीधातु है।
नख-नाखून अँगुलियों के अग्रभाग में उत्पन्न हैं। जिस प्रकार लड़के जब महुए की गुठलियों को डण्डे से तोड़ने का खेल खेलते हैं, तब डण्डे यह नहीं जानते-"हम पर महुए की गुठलियाँ रखी गयी हैं", महुए की गुठलियाँ भी नहीं जानती-"हम डण्डे पर रखी गयी हैं", वैसे ही अंगुलियाँ नहीं जानतीं-"हमारे अग्रभाग पर नाखून स्थित है", नाखून भी नहीं जानते कि "हम अंगुलियों के अग्रभाग में उत्पन्न हैं।"ये धर्म भी परस्पर सोच समझ और प्रत्यवेक्षण से रहित हैं। यों नख इस शरीर का एक विशेष भाग है, जो अचेतन अव्याकृत शून्य, निःसत्त्व, ठोस पृथ्वीधातु है।
दाँत-दाँत जबड़े में उत्पन्न हैं। जैसे जब मजदूर पत्थर से बनी हुई ओखली (के समान