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समाधिनिद्देसो
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अङ्गमङ्गानुसारिनो वाता, अस्सासो पस्सासो इति वा, यं वा पनजं पि किञ्चि अज्झत्तं पच्चत्तं वायो वायोगतं उपादिन्नं-अयं वुच्चतावुसो, अन्झत्तिका वायोधातू" ति च।
एवं नातितिक्खपञस्स धातुकम्मट्ठानिकस्स वसेन वित्थारतो आगतं । यथा चेत्थ, एवं राहुलोवाद (म० नि० २/५८१) धातुविभङ्गेसु (अभि० २/१०२) पि।
१२. तत्रायं अनुत्तानपदवण्णना-अज्झत्तं पच्चत्तं ति। इदं ताव उभयं पि नियकस्स अधिवचनं। नियकं नाम अत्तनि जातं। ससन्तानपरियापन्नं ति अत्थो । तयिदं यथा लोके इत्थीसु कथा अधित्थी ति वुच्चति, एवं अत्तनि पवत्तत्ता अज्झत्तं, अत्तानं पटिच्च पवत्तत्ता पच्चत्तं ति पि वुच्चति।
__कक्खळं ति। थद्धं। खरिगतं ति। फरुसं। तत्थ पठमं लक्खणवचनं, दुतियं आकारवचनं । कक्खळलक्खणा हि पथवीधातु । सा फरुसाकारा होति, तस्मा खरिगतं ति वुत्ता। उपादिन्नं ति। दळ्हं आदिन्नं। अहं ममं ति एवं दळ्हं आदिन्नं, गहितं। परामटुं ति अत्थो।
सेय्यथीदं ति। निपातो। तस्स तं कतमं ति चे ति अत्थो। ततो तं दस्सेन्तो "केसा लोमा" ति आदिमाह। एत्थ च मत्थलुङ्गं पक्खिपित्वा वीसतिया आकारेहि पथवीधातु निट्ठिा ति वेदितब्बा। यं वा पनजं पि किञ्ची ति। अवसेसेसु तीसु कोट्ठासेसु पथवीधातु सङ्गहिता।
- विस्सन्दनभावेन तं तं ठानं अप्पोति पप्पोती ति आपो। कम्मसमुट्ठानादिवसेन नानाविधेसु आपेसु गतं ति आपोगतं । किं तं? आपोधातुया आबन्धनलक्खणं।
आश्वास-प्रश्वास, या जो अन्य भी स्वयं के भीतर वायु, वायुगत उपादान है-आयुष्मन्, इसे कहते हैं आध्यात्मिक वायुधातु।"
जैसे यहाँ (महाहत्थिपदूपम में), वैसे ही राहुलोवाद (म० २/५८१) एवं धातुविभङ्ग (अभि० २/१०२) में भी (विस्तार से आया है)।
१२. यहाँ अस्पष्ट पदों की व्याख्या इस प्रकार है-अज्झत्तं पच्चत्तं-ये दोनों ही (पद) · 'स्वयं' (नियक) के अधिवचन हैं। 'नियक' का अर्थ है अपने में उत्पन्न। अर्थात् अपनी (चित्त-) सन्तान में समाविष्ट। जैसे लोक में स्त्रियों के बीच होने वाली बातचीत ‘अधिस्त्रि' कही जाती है, वैसे ही अपने में प्रवृत्त होने से अध्यात्म (अज्झत्त) एवं अपने आश्रय से प्रवृत्त होने से प्रत्यात्म (पच्चत्तं) भी कहा जाता है। कक्खलं-कठोर (कर्कश)। खरिगतं-परुष (कठोर)। यहाँ प्रथम शब्द (कक्खलं) लक्षण को बतलाता है और द्वितीय (खरिगतं) आकार (रूप) को। क्योंकि पृथ्वीधातु का लक्षणे कठोर होना है। उसका आकार कठोर (ठोस) होता है, अत: उसे 'खरिगतं' कहा गया है। उपादिन्नं-(कर्म द्वारा) दृढ़तापूर्वक ग्रहण किया गया (या प्राप्त) मैं, मेरा-इस रूप में दृढ़तापूर्वक लाया गया, गृहीत अर्थात् परामृष्ट।
सेय्यथीदं-निपात (अव्यय) शब्द है। उसका अर्थ है-वह क्या है? (अर्थात्, 'वह क्या है' यह प्रश्न उपस्थित कर उदाहरण देते समय जैसे' शब्द का प्रयोग किया जाता है।) पुन:, इसे दरसाते हुए ‘केश', 'रोम' आदि कहा गया है। यहाँ पर जानना चाहिये कि मस्तिष्क का भी समावेश करते हुए बीस प्रकार की पृथ्वीधातु का निर्देश किया गया है। यं वा पनचं पि किञ्चिअवशेष तीस भागों में संगृहीत पृथ्वीधातु।