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११. समाधिनिद्देसो एकादसमो परिच्छेदो आहारेपटिक्कूल भावनाकथा
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१. इदानि आरुप्पानन्तरं 'एका सञ्ञा' ति एवं उद्दिद्वाय' आहारे पटिक्कूलसञ्ञाय भावनानिद्देसो अनुप्पत्तो।
तत्थ आहरती ति आहारो । सो चतुब्बिधो - १. कबळीकाराहारो, २. फस्साहारो, ३. मनोसञ्चेतनाहारो, ४. विञ्ञणाहारो ति ।
२. को पनेत्थ किमाहरती ति ? कबळीकाराहारो ओजट्ठमकं रूपं आहरति । फस्साहारो तिस्सो वेदना आहरति । मनोसञ्चेतनाहारो तीसु भवेसु पटिसन्धिं आहरति । विज्ञाणाहारो • पटिसन्धिक्खणे नामरूपं आहरति ।
३. तेसु कबळीकाराहारे निकन्तिभयं २, फस्साहारे उपगमनभयं मनोसञ्चेतनाहारे उपपत्तिभयं, वि॒ञणाहारे पटिसन्धिभयं । एवं सप्पटिभयेसु च तेसु कबळीकाराहारो पुत्तसूपमेन (सं० नि० २/५०९) दीपेतब्बो, फस्साहारो निच्चम्मगावूपमेन (सं० नि० २/५०९),
११. समाधिनिर्देश एकादश परिच्छेद
आहार में प्रतिकूल संज्ञा की भावना
१. अब, आरूप्य के बाद 'एक संज्ञा' - यों पूर्व (तृतीय परिच्छेद में) निर्दिष्ट आहार में . प्रतिकूल संज्ञा की भावना के निर्देश का प्रसङ्ग आ पहुँचा है।
वहाँ, आहार का अर्थ है - आहरण करता (लाता) है। अतः वह चार प्रकार का है१. कवलीकार (ग्रास-ग्रास करके खाया जाने वाला) आहार, २. स्पर्शाहार, ३ मनः सञ्चेतना आहार एवं ४. विज्ञानाहार ।
२. यहाँ, कौन किसे लाता है ? १. कवलीकार आहार ओजोऽष्टमक रूप को लाता है। २ स्पर्शाहार तीन वेदनाओं (सुख, दुःख एवं उपेक्षा) को लाता है । ३. मनः सञ्चेतना आहार तीन भवों में प्रतिसन्धि को लाता है । ४. विज्ञानाहार प्रतिसन्धि के क्षण में नाम - रूप को लाता है।
३. उनमें से, कवलीकार आहार में तृष्णा (निकन्ति) का, स्पर्शाहार में उपगमन ( पास जाने), मनःसञ्चेतना आहार में उत्पत्ति एवं विज्ञानाहार में प्रतिसन्धि का भय है । इस प्रकार भय के साथ रहने वाले उनमें से कवलीकार आहार को पुत्र - मांस की उपमा द्वारा (सं० नि० २ / ५०९),
१. ततियपरिच्छेदे ति सेसो ।
२. निकन्ति = तण्हा, तं भयं अनत्थावहतो । ३. चार महाभूत, गन्ध, वर्ण, रस एवं ओज-ये आठ 'ओजोऽष्टमक' (ओज के साथ आठ) कहे जाते
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