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विसुद्धिमग्गो
कुणप - मनुस्सकुणप-अहिकुणप - कुक्कुरकुणपानि पि दट्ठब्बानि भवन्ति । न केवलं च दट्ठब्बानि, गन्धो पि नेसं घानं पटिहनमानो अधिवासेतब्बो होति । ततो गामद्वारे ठत्वा चण्डहत्थिअस्सादिपरिस्र्यपरिवज्जनत्थं गामरच्छा ओलोकेतब्बा होन्ति ।
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इच्चेतं पच्चत्थरणादिअनेककुणपपरियोसानं पटिक्कूलं आहारहेतु अक्कमितब्बं च दट्ठब्ब च घायितब्बं च होति — अहो वत, भो, पटिक्कूलो आंहारो ति । एवं गमनतो पटिक्कूला पच्चवेक्खितब्बा । (१)
कथं परियेसनतो? एवं गमनपटिक्कूलं अधिवासेत्वाऽपि गामपविट्ठेन सङ्घाटिपारुतेन कपणमनुस्सेन विय कपालहत्थेन घरपटिपाटिया गामवीथीसु चरितब्बं होति, यत्थ वस्सकाले अक्कन्तअक्कन्तट्ठाने याव पिण्डिकमंसा पि उदकचिक्खल्ले' पादा पविसन्ति, एकेन हत्थेन पतं गहेतब्बं होति, एकेन चीवरं उक्खिपितब्बं । गिम्हकाले वातवगेन समुट्ठितेहि पंसुतिणरजेहि ओकिण्णसरीरेन चरितब्बं । तं तं गेहद्वारं पत्वा मच्छधोवन-मंसधोवन - तण्डुलधोवन - खेळ - सिङ्घाणिक-सुनख-सूकरवच्चादीहि सम्मिस्सानि किमिकुलाकुलानि नीलमक्खिकपरिकिण्णानि ओळिगल्लानि चेव चन्दनिकट्ठानानि च दट्ठब्बानि होन्ति, अक्कमितब्बानि पि । यतो ता मक्खिका उट्ठहित्वा सङ्घाटियं पि पत्ते पि सीसे पि निलीयन्ति !
घरं पविट्ठस्सा पि केचि देन्ति, केचि न देन्ति । ददमाना पि एकच्चे हिय्यो पक्कभत्तं पि पुराणखज्जकं पि पूतिकुम्माससूपादीनि पि ददन्ति । अददमाना पि केचिदेव " अतिच्छथ,
फिर ग्रामद्वार पर खड़े होकर मतवाले हाथी, घोड़े आदि के उपद्रवों से बचने के लिये ग्राम की ओर जाने का रास्ता देखना पड़ता है।
यों आहारहेतु गलीचे से लेकर अनेकानेक ग़न्दगियों को पार करना, देखना, सूँघना पड़ता है। ओह! आहार कितना प्रतिकूल है। यों गमन से प्रतिकूलता का प्रत्यवेक्षण करना चाहिये । (१) पर्येषण से किस प्रकार ? यों गमन की प्रतिकूलता सहने के बाद भी सङ्घाटी ( चीथड़ों
से बना ओढ़ने का वस्त्र) ओढ़कर ग्राम में प्रविष्ट (भिक्षु) को भिखारी के समान हाथ में भिक्षापात्र लिये हुए ग्राम की गलियों में घर घर घूमना पड़ता है । वर्षाकाल में जिन जिन स्थानों को पार करता है, घुटने पर पानी कीचड़ में पैर धँस जाते हैं। एक हाथ से पात्र पकड़ना होता है, दूसरे से चीवर उठाये रखना होता है। गर्मी के दिनों में वायुवेग से उड़ती हुई धूल-गर्द, तिनकों से धूसरित शरीर लिये हुए चारिका करनी पड़ती है। इस या उस घर के दरवाजे पर जाकर ऐसे गड्ढे गढ़हियों को देखना पड़ता है पार भी करना पड़ता है, जो मछली मांस या चावल के धोवन, कफ-पोंटा, कुत्ते-सूअर के मल आदि के साथ कीड़ों के झुण्ड से बजबजाते रहते हैं, जिन पर
मक्खियाँ भिनभिनाती रहती हैं जो उड़कर सङ्घाटी में भी, पात्र में भी, सिर में भी घुस जाती हैं। घर में प्रवेश करने पर भी कोई दाता देते हैं, कोई कोई नहीं देते। देने वालों में भी कोई
१. उदकचिक्खल्ले ति । उदकमिस्से कद्दमे ।
२. ओळिगल्लनि । उच्छिट्ठोदकगब्भमलादीनं सकद्दमानं सन्दनट्ठानानि यानि जण्णुमत्तअसुचिभरितानि पि ३. चन्दनिकानि केवलानं उच्छिट्ठोदकगब्भमलादीनं सन्दनट्ठानानि ।
होन्ति ।