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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो
अजानतो च तयो धम्मे भावना नुपलब्धति ॥ निमित्तं अस्सासपस्सासा अनारम्मणमेकचित्तस्स । जानतो व तयो धम्मे भावना उपलब्धती" ति ॥
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(खु०नि० ५ / १९९) एवं उपट्टि पन निमित्ते तेन भिक्खुना आचरियस्स सन्तिकं गन्त्वा आरोचेतब्बं"मय्हं, भन्ते, एवरूपं नाम उपट्ठाती" ति । आचरियेन पन " एतं निमित्तं ति वा न वा निमित्तं " ति न वत्तब्बं । " एवं होति, आवुसो" ति वत्वा "पुनप्पुनं मनसिकरोही " ति वत्तब्बो । निमित्तं ति हि वुत्ते वोसानं आपज्जेय्य । न निमित्तं ति वुत्ते निरासो विसीदेय्य । तस्मा तदुभयं पि अवत्वा मनसिकारे येव नियोजेतब्बो ति । एवं ताव दीघभाणका ।
मज्झिमभाणका पनाहु - " निमित्तमिदं, आवुसो, कम्मट्ठानं पुनप्पुनं मनसिकरोहि सप्पुरिसा ति वत्तब्बो" ति ।
. अथानेन निमित्ते येव चित्तं ठपेतब्बं । एवमस्सायं इतो पभुति ठपनावसेन भावना होति । वुत्तं तं पोराणेहि
"निमित्ते ठपयं चित्तं नानाकारं विभावयं । धीरो अस्सासपस्सासे सकं चित्तं निबन्धती" ति ॥
(वि० अट्ठ० २/३०) तस्सेवं निमित्तुपट्टानतो पभुति नीवरणानि विक्खम्भितानेव होन्ति, किलेसा सन्निसिन्ना व, सति उपट्ठिता येव, चित्तं उपचारसमाधिना समाहितमेव ।
जब निमित्त यों उपस्थित हो, तब भिक्षु को आचार्य के पास जाकर निवेदन करना चाहिये" भन्ते, मुझे ऐसा लग रहा है।" आचार्य को "यह निमित्त है" या "यह निमित्त नहीं है"ऐसा नहीं कहना चाहिये। "आयुष्मन् ! ऐसा ही होता है" कहकर, "पुनः पुनः मन में लाते रहो " ऐसा कहना चाहिये; क्योंकि "निमित्त है" यों कह दिये जाने पर सम्भव है कि वह ('लक्ष्य प्राप्त हो गया' - ऐसा सोचकर ) प्रयास करना ही छोड़ दे, और "निमित्त नहीं है"- ऐसा कहे जाने पर निराशा में डूब जाय । अतः वह दोनों ही न कहकर, मनस्कार में ही लगाना चाहिये। यह दीघभाणकों का मत है।
किन्तु मज्झिमभाणकों का कहना है कि " आयुष्मन् ! यह निमित्त है। बहुत अच्छा ! पुनः पुनः मनस्कार करते रहो " थीं कहा जाना चाहिये ।
तत्पश्चात् इसे निमित्त में ही चित्त को स्थिर रखना चाहिये। यों इसे उसी समय से स्थापना के अनुसार भावना होती है; क्योंकि, प्राचीन विद्वानों ने कहा है
" निमित्त में चित्त को स्थिर रखते हुए धैर्यवान् पुरुष आश्वास-प्रश्वास में अपने चित्त को बाँधता है । " ( वि० अट्ठ० २ / ३० ) ॥
जब से उसे निमित्त यों जान पड़ने लगता है, तब से उसके नीवरण तो दब ही जाते हैं, क्लेश भी बैठ जाते हैं, स्मृति भी उपस्थित होती है, चित्त भी उपचारसमाधि से समाहित होता है।