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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिहेसो
१४३ आयुअन्तरं परिच्छिन्नमेव होति। सो "एत्तकं दानि मे आयुसङ्घारा पवत्तिस्सन्ति, न इतो परं" ति बत्वा अत्तनो धम्मताय येव सरीरपटिजग्गननिवासनपारुपनादीनि सब्बकिच्चानि कत्वा अक्खीनि निमीलेति कोटपब्बतविहारवासी तिस्सत्थेरो विय, महाकरञ्जियविहारवासी महातिस्सत्थेरो विय, देवपुत्तमहारट्टे पिण्डपातिकतिस्सत्थेरो विय, चित्तलपब्बतविहारवासिनो द्वे भातियत्थेरा विय च। ___७६. तत्रिदं एकवत्थुपरिदीपनं-द्वेभातियत्थेरानं किरेको पुण्णमुपोसथदिवसे पातिमोक्खं ओसारेत्वा भिक्खुसङ्घपरिवुतो अत्तनो वसनट्ठानं गन्त्वा चङ्कमे ठितो चन्दालोकं ओलोकेत्वा अत्तनो आयुसङ्खारे उपधारेत्वा भिक्खुसङ्ख आह-"तुम्हेहि कथं परिनिब्बायन्ता भिक्खू दिट्टपुब्बा" ति? तत्र केचि आहंसु-"अम्हेहि आसने निसिन्नका व परिनिब्बायन्ता दिट्ठपुब्बा" ति। केचि "अम्हेहि आकासे पल्लङ्कं आभुजित्वा निसिनका" ति। थेरो आह"अहं दानि वो चङ्कमन्तमेव परिनिब्बायमानं दस्सेस्सामी" ति। ततो चङ्कमे लेखं कत्वा “अहं इतो चकमकोटितो परकोटिं गन्त्वा निवत्तमानो इमं लेखं पत्वा व परिनिब्बायिस्सामी" ति वत्वा चङ्कमं ओरुय्ह परभागं गन्त्वा निवत्तमानो एकेन पादेन लेखं अक्कन्तक्खणे येव परिनिब्बायि।
तस्मा हवे अप्पमत्तो अनुयुञ्जेथ पण्डितो। एवं अनेकानिसंसं आनापानस्सतिं सदा ति॥
. इदं आनापानस्सतियं वित्थारकथामुखं॥ जीवन-अवधि का निश्चित ज्ञान हो सकता है या नहीं भी हो सकता; किन्तु सोलह वस्तुओं वाली इस आनापानस्मृति की भावना कर अर्हत्व प्राप्त करने वाले को अपनी जीवन-अवधि का निश्चित ज्ञान (परिच्छेद) अवश्य होता है। वह "इसी समय तक मेरे आयु:संस्कार प्रवर्तित होंगे, इसके बाद नहीं'-यों जानते हुए, स्वभावतः ही शरीर के सभी कृत्य-पहनना, ओढ़ना आदि करते हुए आँखें बन्द करता है (मृत्यु प्राप्त करता है), कोटपर्वतविहारवासी तिष्य स्थविर के समान, महाकरञ्जियविहारवासी महातिष्य स्थविर के समान, देवपुत्र साम्राज्य में पिण्डपातिक तिष्य स्थविर के समान एवं चित्तलपर्वत विहारवासी दो स्थविर बन्धुओं के समान।
७६. यहाँ एक कथा बतलायी जा रही है-दो स्थविर भाईयों में से एक पूर्णिमा के उपोसथ के दिन प्रातिमोक्ष को समाप्त कर भिक्षुसङ्घ से घिरे हुए अपने निवासस्थान पर गये।
चंक्रमण स्थल पर खड़े होकर चाँदनी को निहारते हुए, अपने आयु:-संस्कारों पर विचार कर, भिक्षुसङ्घ से कहा-"अभी तक तुम लोगों ने भिक्षुओं को किस प्रकार (किस ईर्यापथ में) परिनिर्वृत होते हुए देखा है?" किसी ने कहा- अभी तक हमने आसन पर बैठे बैठे परिनिर्वृत हुए लोगों को देखा है।" किसी ने (कहा)-"हमने आकाश में पद्मासन लगाकर बैठे हुओं को।" स्थविर ने कहा-"अब मैं आप सबको चंक्रमण करते हुए ही परिनिर्वृत होना दिखलाऊँगा।" तब चंक्रमणस्थल पर रेखा खींचकर कहा-"मैं यहाँ से चंक्रमणस्थल के अन्तिम छोर पर जाकर लौटते समय इसी लकीर के पास आकर ही परिनिर्वृत हो जाऊँगा।" तत्पश्चात् चंक्रमण करते हुए दूसरी ओर जाकर वहाँ से लौटते समय एक पैर से रेखा को जब लाँघ रहे थे, उसी समय परिनिर्वृत हो गये।