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ब्रह्मविहारनिद्देसो
१७५ विय अग्गि वा, संयुत्तभाणकचूळसिवत्थेरस्सेव विसं वा, सङ्किच्चसामणेरस्सेव सत्थं वा न कमति, न पविसति। नास्स कायं विकोपेती ति वुत्तं होति।।
धेनुवत्थु पि चेत्थ कथयन्ति। एका किर धेनु वच्छकस्स खीरधारं मुञ्चमाना अट्ठासि। एको लुद्दको 'तं विज्झिस्सामी' ति हत्थेन सम्परिवत्तेत्वा दीघदण्डसत्तिं मुञ्चि। सा तस्सा सरीरं आहच्च तालपण्णं विय पवट्टमाना गता, नेव उपचारबलेन, न अप्पनाबलेन, केवलं वच्छके बलवपियचित्तताय। एवंमहानुभावा मेत्ता ति। (७) ।
तुवटं चित्तं समाधियती ति। मेत्ताविहारिनो खिप्पमेव चित्तं समाधियति, नत्थि तस्स दन्धायितत्तं। (८)
___ मुखवण्णो विप्पसीदती ति। बन्धना पवुत्तं तालपक्कं विय चस्स विप्पसन्नवण्णं मुखं होति। (९)
___ असम्मूळ्हो कालं करोती ति। मेत्ताविहारिनो सम्मोहमरणं नाम नत्थि, असम्मूळ्हो न निदं ओक्कमन्तो विय कालं करोति। (१०)
उत्तरि अप्पटिविज्झन्तो ति। मेत्तासमापत्तितो उत्तरि अरहत्तं अधिगन्तुं असक्कोन्तो इतो चवित्वा सुत्तप्पबुद्धो विय ब्रह्मलोकं उपज्जती ति॥ (११)
अयं मेत्ताभावनाय वित्थारकथा॥ २. करुणाभावनाकथा ४१. करुणं भावेतुकामेन पन निक्करुणताय आदीनवं करुणाय च आनिसंसं पच्च
नास्स अग्गि वा विसं वा सत्थं वा कमति-मैत्री-विहारी भिक्षु के शरीर पर न तो उत्तरा उपासिका के समान अग्नि का, न संयुक्तभाणक चूळस्थविर के समान विष का, न सांकृत्य श्रामणेर के समान शस्त्र का प्रभाव पड़ता है। अर्थात् उसके शरीर को हानि नहीं पहुँचाता। (७)
तुवटं चित्तं समाधियति-मैत्रीविहारी का चित्त शीघ्र ही (तुवटं-त्वरितम्) एकाग्र हो जाता है, उसके लिये आलस्य का कोई चिह्न नहीं है। (८)
मुखवण्णो विप्पसीदति-डण्डी से टूटे हुए पके ताड़ के फल के समान, उसके मुख का रंग खिला खिला सा रहता है। (९)
असम्मूळ्हो कालं करोति-मैत्रीविहारी के लिये सम्मोह (बेहोशी) के साथ मृत्यु (का अस्तित्व) नहीं है। असम्मोह के साथ ही, नींद लग जाने के समान, मृत्यु को प्राप्त होता है। (१०) ___उत्तरि अप्पटिविज्झन्तो-यदि वह मैत्रीसमापत्ति से उत्तर अवस्था (अर्हत्त्व) को न भी पा सका, तो भी यहाँ से च्युत होकर नींद से जगे हुए के समान ब्रह्मलोक में तो उत्पन्न होता ही है। (११)
यह मैत्रीभावना की विस्तृत व्याख्या पूर्ण हुई।
२. करुणा भावना, ४१. करुणा (करुणा ब्रह्मविहार) की भावना के अभिलाषी को करुणारहित होने के दोष
१. करुणं ति। करुणाब्रह्मविहारं। २. द्र० धम्मपद अट्ठकथा १७.३, ८.९ एवं विशुद्धिमार्ग का बारहवाँ परिच्छेद।