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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो
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सेय्यथापि रुक्खो समे भूमिभागे निक्खित्तो, तमेनं पुरिसो ककचेन छिन्देय्य । रुक्खे फुट्ठककचदन्तानं वसेन पुरिसस्स सति उपट्ठिता होति, न आगते वा गते वा ककचदन्ते मनसिकरोति, न आगतां वा गता वा ककचदन्ता अविदिता होन्ति, पधानं च पञ्ञायति, पयोगं च साधेति, विसेसमधिगच्छति । यथा रुक्खो समे भूमिभागे निक्खित्तो, एवं उपनिबन्धनानिमित्तं । यथा ककचदन्ता, एवं अस्सासपस्सासा । यथा रुक्खे फुट्ठककचदन्तानं वसेन पुरिसस्स सति उपट्ठिता होति, न आगते वा गते वा ककचदन्ते मनसि करोति, न आगता वा गता वा ककचदन्ता अविदिता होन्ति, पधानं च पञ्ञायति, पयोगं च साधेति, विसेसमधिगच्छति; एवमेव भिक्खु नासिकग्गे वा मुखनिमित्ते वा सतिं उपठ्ठपेत्वा निसिन्नो होति, न आगते वा गते वा अस्सासपस्सासे मनसि करोति, न आगता वा गता वा अस्सासपस्सासा अविदिता होन्ति, पधानं च पञ्ञायति, पयोगं च साधेति, विसेसमधिगच्छति ।
पधानं ति कतमं पधानं ? आरद्धविरियस्स कायो पि चित्तं पि कम्मनियं होति, इदं पधानं । कतमो पयोगो ? आरद्धविरियस्स उपक्किलेसा पहीयन्ति, वितक्का वूपसमन्ति, अयं पयोगो । कतमो विसेसो ? आरद्धविरियस्स संयोजना पहीयन्ति, अनुसया ब्यन्तीहोन्ति, अयं विसेस । एवं इमे तो धम्मा एकचित्तस्स आरम्मणा न होन्ति, न चिमे तयो धम्मा अविदिता होन्ति, न च चित्तं विक्खेपं गच्छति, पधानं च पञ्ञायति, पयोगं च साधेति, विसेसमधिगच्छति ।
"आनापानसति
परिपुणा
सुभाविता ।
है ? कि (वह) कार्य सिद्ध करता है ? कि विशिष्टता प्राप्त करता है ? जैसे कि कोई वृक्ष समतल भूमि पर पड़ा हो और उसे कोई व्यक्ति आरे से काट दे । (इस उदाहरण में) वृक्ष को स्पर्श करने वाले आरे के दाँतों के बारे में पुरुष की स्मृति उपस्थित होती है, आ चुके या जा चुके आरे के दाँतों पर वह ध्यान नहीं देता, न ही आ चुके या जा चुके आरे के दाँत उसे अविदित होते हैं । (यों उसे) वीर्य जान पड़ता है, कार्य सिद्ध करता है, विशिष्टता प्राप्त करता है। जैसे वृक्ष समतल भूमि पर रखा हो, वैसा ही उपनिबन्धन निमित्त है। जैसे आरे के दाँत हों, वैसे ही आश्वास-प्रश्वास हैं । जैसे वृक्ष को स्पर्श करने वाले... विशिष्टता प्राप्त करता है, वैसे ही भिक्षु नासिकाग्र में या मुख निमित्त में स्मृति को उपस्थित कर बैठा होता है, आ चुके या जा चुके आश्वास-प्रश्वास पर ध्यान नहीं देता, न ही उसे आ चुके या जा चुके आश्वास-प्रश्वास अविदित होते हैं, (यों उसे) वीर्य जान पड़ता है, कार्य सिद्ध करता है, विशिष्टता प्राप्त करता है।
यस्स
प्रधान- -कौन- सा प्रधान ? वीर्यारम्भ किये हुए का कार्य तथा चित्त भी कर्म करने योग्य होता है - यह प्रधान है। कौन सा प्रयोग ? वीर्यारम्भ किये हुए के उपक्लेश (नीवरण) दूर होते हैं, वितर्क शान्त होते हैं - यह प्रयोग है। कौन सा विशेष ? वीर्यारम्भ किये हुए के संयोजन दूर हो जाते हैं, अनुशय नष्ट हो जाते हैं - यह विशेष है । यों ये तीन धर्म एक चित्त के आलम्बन नहीं होते, न ही ये तीनों धर्म अविदित होते हैं, न चित्त विक्षेप को प्राप्त होता है; (किन्तु) वीर्य जान पड़ता है, कार्य सिद्ध करता है, विशेषता प्राप्त करता है।
जिसने आनापानस्मृति की पूर्ण रूप से, सम्यक्तया भावना एवं भगवत् - देशनानुरूप क्रमशः