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छअनुस्सतिनिद्देसो
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४१. तत्थ लाभा वत मे ति। मव्हं वत लाभा, ये इमे "आयुं खो पन दत्वा आयुस्स भागी होति दिब्बस्स वा मानुसस्सवा" (अं० नि० २/३९४) इति च, "ददं पियो होति भजन्ति नं बहू' (अं० नि० २/३९२) इति च, "ददमानो पियो होति, सतं धम्ममनुक्कमं" (अं० नि० २/३९३) इति च एवमादीहि नयेहि भगवता दायकस्स लाभा संवण्णिता, ते मव्हं अवस्सं भागिनो ति अधिप्पायो।
४२. सुलद्धं वत मे ति। यं मया इदं सासनं मनुस्सत्तं वा लद्धं, तं सुलद्धं वत मे। कस्मा? योहं मच्छेरमलिपरियुट्ठिताय पजाय...पे०...दानसंविभागरतो ति। ___तत्थ मच्छेरमलपरियुट्ठिताया ति। मच्छेरमलेन अभिभूताय । पजाया ति। पजायनवसेन सत्ता वुच्चन्ति। तस्मा अत्तनो सम्पत्तीनं परसाधारणभावमसहनलक्खणेन चित्तस्स पभस्सरभावदूसकानं कण्हधम्मानं' अञतरेन मच्छेरमलेन अभिभूतेसु सत्तेसू ति अयमेत्थ अत्थो।
विगतमलमच्छेरेना ति। अजेसं पि रागदोसादिमलानं चेव मच्छेरस्स च विगतत्ता विगतमलमच्छेरेन। चेतसा विहरामी ति। यथावुत्तप्पकारचित्तो हुत्वा वसामी ति अत्थो। सुत्तेसु पन महानामसक्कस्स सोतापनस्स सतो निस्सयविहारं पुच्छतो निस्सयविहारवसेन देसितत्ता अगारं अज्झावसामी ति वुत्तं । तत्थ अभिभवित्वा वसामी ति अत्थो।
मलरहित चित्तवाला होकर रहता हूँ, उन्मुक्त भाव से दान करने वाला देने के लिये सदा तत्पर, देने में प्रसन्नता का अनुभव करने वाला, याच्या किये जाने योग्य को देने और बाँटने में लगा हुआ
४१. लाभा वत मे- "मुझे बहुत लाभ है। जो कि 'जीवन देकर दिव्य या मानव जीवन पाता है' (अं० नि० २/३९४), तथा 'देने वाला प्रिय होता है, उसके साथ बहुत से लोग लगे रहते हैं' (अं० नि० २/३९२), तथा 'सज्जनों के धर्म के अनुरूप, देते हुए प्रिय होता है' (अं० नि० २/३९३)-आदि प्रकार से भगवान् ने दाता को प्राप्त होने वाले जिन लाभों की प्रशंसा की है, वे मुझे अवश्य प्राप्त होंगे"-यह अभिप्राय है।
४२. सुलद्धं वत मे-यह मेरा बहुत बड़ा लाभ है कि मैंने (बुद्ध के) शासन को या मनुष्यत्व को पाया है। क्यों? जो कि मैं मात्सर्य-मल से अभिभूत सत्त्वों के बीच...पूर्ववत्...दान देने, बाँटने में लगा हूँ।
___ मच्छेरमलपरियुट्टिताय–मात्सर्य मल से अभिभूत (वशीभूत) में। पजाय-उनका प्रजनन (वंशवृद्धि) होता है, अतः सत्त्वों को 'प्रजा' कहते हैं। इसलिये, अपनी सम्पत्ति की साझेदारी को न सह पाना जिसका लक्षण है और जो चित्त की प्रभास्वरता को दूषित करने वाले कृष्ण धर्मों (लोभ आदि) में से एक है, उस मात्सर्यरूप मल से अभिभूत सत्वों में यहाँ यह अर्थ है।
विगतमलमच्छेरेन-अन्य राग-द्वेष आदि मलों तथा मात्सर्य से भी रहित होने से, मात्सर्यमल से रहित के साथ। (यह चित्त का विशेषण है)। चेतसा विहरामि-अर्थात् यथोक्त प्रकार के चित्त वाला होकर रहता हूँ। किन्तु सूत्र (अ० नि० के महानामसूत्र) में स्रोतआपन महानाम १. कण्हधम्मानं ति। लोभादिएकन्तकाळकानं पापधम्मानं ।