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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिहेसो यो नामिद्धिमतं सेट्ठो दुतियो अग्गसावको॥ सो पि मच्चुमुखं घोरं मिगो सीहमुखं विय। पविट्ठो सह इद्धीहि मादिसेसु कथा व का ति॥
एवं इद्धिमहत्ततो अनुस्सरितब्बं । कथं पञ्जामहत्ततो?
लोकनाथं ठपेत्वान ये चचे अत्थि पाणिनो। पाय सारिपुत्तस्स कलं नाग्घन्ति सोळसिं॥ एवं नाम महापञो पठमो अग्गसावको। मरणस्स वसं पत्तो मादिसेसु कथा व का ति॥
___एवं पञामहत्ततो अनुस्सरितब्बं । कथं पच्चेकबुद्धतो?
ये पि ते अत्तनो आणविरियबलेन सब्बकिलेससत्तुनिम्मथनं कत्वा पच्चेकबोधिं पत्ता खग्गविसाणकप्पा सयम्भुनो, ते पि मरणतो न मुत्ता, कुतो पनाहं मुच्चिस्सामी ति!
तं तं निमित्तमागम्म वीमंसन्ता महेसयो।
सयम्भुजाणतेजेन ये पत्ता आसवक्खयं॥ - . एकचरियनिवासेन
खग्गसिङ्गसमूपमा। ऋद्धिमानों के साथ कैसे तुलना करनी चाहिये?
श्रेष्ठ ऋद्धिमान् द्वितीय अग्रश्रावक (महामौद्गल्यायन) जिन्होंने पैर के अंगूठे के स्पर्श मात्र से वैजयन्त (प्रासाद) को कँपा दिया था, वे भी मृत्यु के भयानक मुख में अपनी सिद्धियों समेत वैसे ही समा गये, जैसे कि सिंह के मुख में हिरण समा जाता है। फिर मुझ जैसों की तो बात ही क्या है!॥
यों महान् ऋद्धिमानों से (तुलना करते हुए) अनुस्मरण करना चाहिये। (४) कैसे महाप्रज्ञावानों से तुलना करनी चाहिये?
लोकनाथ (भगवान् बुद्ध) के अतिरिक्त अन्य प्राणी प्रज्ञा में सारिपुत्र की सोलहवीं कला की भी बराबरी नहीं कर सकते। ऐसे महाप्राज्ञ प्रथम अग्रश्रावक भी मृत्यु के सुख में जा पड़े, फिर मुझ जैसे की बात ही क्या है!॥
यों महाप्रज्ञावानों के साथ (तुलना करते हुए) अनुस्मरण करना चाहिये। (५) कैसे प्रत्येकबुद्धों से तुलना करनी चाहिये?
जो अपने ज्ञान तथा वीर्य-बल से सर्वेक्लेश-शत्रुओं का मर्दनकर, प्रत्येकबोधि प्राप्त कर गेंडे के समान एकाकी विचरण करने वाले स्वयम्भू (स्वयं ज्ञान प्राप्त करने वाले) हैं, वे भी मृत्यु से नहीं बच पाये, फिर मैं कैसे बनूंगा!
उन उन निमित्तों (लक्षणों) को पाकर मीमांसा करने वाले महर्षिगण जिन्होंने एकाकी विचरण और (एकाकी) निवास के विषय में गेंडे के सींग से समानता की है, वे (प्रत्येकबुद्ध) भी जब अपनी मृत्यु को नहीं टाल सके, तब मुझ जैसे की तो बात ही क्या है!॥
यों प्रत्येकबुद्ध से (तुलना करते हुए) अनुस्मरण करना चाहिये। (६)