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विसुद्धिमग्गो जेगुच्छभावं आपज्जित्वा लिट्ठति, यं सुत्वा पि पानभोजनादीसु अमनुञता सण्ठाति, पगेव पञाचक्खुना अवलोकेत्वा । यत्थ च पतितं पानभोजनादि पञ्चधा विवेकं गच्छति-एकं भागं पाणका खादन्ति, एकं भागें उदरग्गि झापेति, एको भागो मुत्तं होति, एको भागो करीसं, एको भागो रसभावं आपज्जित्वा सोणितमंसादीनि उपब्रूहयति। ,
परिच्छेदतो उदरपटलेन चेव उदरियभागेन च परिच्छिन्नं, अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (१८)
____३७. करीसं ति वच्चं । तं वण्णतो येभुय्येन अज्झोहटाहारवण्णमेव होति । सण्ठानतो ओकाससण्ठानं । दिसतो हेट्ठिमायं दिसाय जातं। ओकासतो पक्कासये ठितं।।
पक्कासयो नाम हेट्टानाभिपिट्टिकण्टकमूलानं अन्तरे अन्तावसाने उब्बेधेन अट्टङ्गलमत्तो वेळुनाळिकसदिसो। यत्थ, सेय्यथापि नाम उपरि भूमिभागे पतितं वस्सोदकं ओगळित्वा हेट्ठा भूमिभागं पूरेत्वा तिट्ठति; एवमेव यं किञ्चि आमासये पतितं पानभोजनादिकं उदरग्गिना फेणुद्देहकं पक्कं पक्कं निसदाय पिसितमिव सहभावं आपज्जित्वा अन्तबिलेन ओगळित्वा, ओमद्दित्वा वेळुपब्बे पक्खिपमानपण्डुमत्तिका विय सन्निचितं हुत्वा तिट्ठति।
का टुकड़ा, थूक, पोंटा, रक्त आदि नाना प्रकार की गन्दगी चाण्डाल-ग्राम के द्वार पर की गढही में गिरकर कीचड़-पानी से मिल जाती है। दो तीन दिन बीतने पर उसमें कीड़ों का समूह उत्पन्न हो जाता है, जो धूप की गर्मी के तेज से पीड़ित होकर ऊपर की ओर फेन के बुलबुले छोड़ता है। वह (गड़ही की गन्दगी) एकदम काले रंग की, अत्यधिक दुर्गन्धित, घृणित, न तो पास जाने योग्य और न देखने योग्य ही होती है, सूंघने या चाटने की तो बात ही क्या है! वैसे ही जठराग्नि की गर्मी के तेज से पीड़ित हुए क्रिमियों का छोटा बड़ा समूह ऊपर की ओर फेन के बुलबुले छोड़ता है। वह (उदरस्थ पदार्थ) अत्यन्त सड़ा, दुर्गन्धित और घृणित हो जाता है, जिसे सुनकर भी पेय, भोजन आदि के प्रति वितृष्णा हो जाती है; फिर ज्ञान-चक्षु से देखने की तो बात ही क्या है! एवं जहाँ पड़ा हुआ पेय, भोजन आदि पाँच भागों में बँट जाता है-एक भाग कीड़े खा जाते हैं, एक भाग जठराग्नि जला डालती है, एक भाग मूत्र बन जाता है, एक भाग मल बन जाता है, और एक भाग रस बनकर रक्त-मांस आदि की वृद्धि करता है।
परिच्छेद से-उदर पटल और उदरस्थ पदार्थों से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद हैं। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही हैं। (१८)
३७. मल-पाखाना। वह वर्ण से प्रायः खाये गये आहार के ही रंग का होता है, एवं संस्थान से अवकाश के आकार का होता है। (अर्थात् जिस खाली स्थान को भरकर वह स्थित होता है, उसी के आकार का होता है।) दिशा से-नीचे की दिशा में होता है। अवकाश सेपक्वाशय में स्थित है।
पक्वाशय (मलाशय)-रीढ़ के मूल प्रदेश एवं नाभि के बीच, आँत का सबसे निचला भाग है। यह आठ अङ्गल ऊँचा, बाँस की नली जैसा है। जैसे कि जब किसी ऊँचे स्थान पर पानी बरसता है; तब वह नीचे की ओर आता है और वहीं रुक जाता है, वैसे ही यह पक्वाशय होता है, कोई भी खाद्य पेय जो पक्वाशय में गिरता है, वहाँ जठराग्नि द्वारा निरन्तर पकता रहता