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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो
११३ पस्ससन्ति च । केचि सुनख-ससादयो विय रस्सं। तस्मा तेसं कालवसेन दीघमद्धानं निक्खमन्ता च पविसन्ता च ते 'दीघा', इत्तरमद्धानं निक्खमन्ता च पविसन्ता च 'रस्सा' ति वेदितब्बा।
तत्रायं भिक्खु नवहाकारेहि दीघं अस्ससन्तो पस्ससन्तो च 'दीघं अस्ससामि पस्ससामी' ति पजानाति। एवं पजानतो चस्स एकेनाकारेन कायानुपस्सनासतिपट्टानभावना सम्पजती ति वेदितब्बा। यथाह पटिसम्भिदायं
___ 'कथं दीघं अस्ससन्तो 'दीघं अस्ससामी' ति पजानाति? दीघं पस्ससन्तो 'दीघं पस्ससामी' ति पजानाति? दीघं अस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससति, दीघं पस्सासं अद्धानसङ्खाते पस्सति।दीर्घ अस्सासपस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससति पि पस्ससति पि। दीघं अस्सासपस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससतो पि पस्ससतो पि छन्दो उप्पज्जति। छन्दवसेन ततो सुखुमतरं दीघं अस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससति, छन्दवसेन ततो सुखुमतरं दीघं पस्सासं..पे०..दीर्घ अस्सासपस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससति पि पस्ससति पि। छन्दवसेन ततो सुखुमतरं दीघं अस्सासपस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससतो पि पस्ससतो पि पामोजं उप्पजति। पामोजवसेन ततो सुखुमतरं दीघं अस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससति। पामोजवसेन ततो सुखुमतरं दीर्घ पस्सासं..पे०..दीघं अस्सासपस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससति पि पस्ससति पि। पामोजवजेन ततो सुखुमतरं दीघं अस्सासपस्सासं अद्धानसङ्खाते अस्ससतो पि पस्ससतो पि दीर्घ अस्सासपस्सासा चित्तं विवट्टति, उपेक्खा सण्ठाति। इमेहि नवहि आकारेहि दीघं अस्ससपस्सासा कायो। उपट्टानं सति।अनुपस्सना आणं। कायो उपट्टानं, नो सति। सति उपट्टानं लेते और छोड़ते हैं, तो कोई कुत्ते या खरगोश के समान छोटा। इसलिये जब वे (आश्वास-प्रश्वास) समय के अनुसार लम्बी दूरी तक निकलें और प्रवेश करें, तब उन्हें दीर्घ, एवं जब अल्प दूरी तक निकले और प्रवेश करें तब ह्रस्व जानना चाहिये।
वहाँ यह भिक्षु नौ प्रकार से लम्बो सांस लेते और छोड़ते हुए 'लम्बा सांस ले रहा और छोड़ रहा हूँ'-ऐसा जानता है। यों जानते हुए उसे एक प्रकार से कायानुपश्यना-स्मृतिप्रस्थान भावना उत्पन्न होती है-ऐसा समझना चाहिये। जैसा कि पटिसम्भिदा में कहा गया है
"किस प्रकार लम्बा सांस लेते हुए ‘लम्बा सांस ले रहा हूँ'-ऐसा जानता है? कालिक दृष्टि से लम्बा सांस लेता है, कालिक दृष्टि से लम्बा सांस छोड़ता है। कालिक दृष्टि से लम्बा. सांस लेता भी है, छोड़ता भी है, कालिक दृष्टि से लम्बा सांस लेते हुए भी, छोड़ते हुए भी, छन्द (उत्साह) उत्पन्न होता है। छन्द के कारण पूर्वापेक्षया सूक्ष्म (मन्द) और कालिक दृष्टि से लम्बा सांस लेता है, छन्द के कारण पूर्वापेक्षया सूक्ष्म, लम्बा सांस छोड़ता ...पूर्ववत्... कालिक दृष्टि से लम्बा सांस लेता भी है, छोड़ता भी है। छन्द के कारण, कालिक दृष्टि से पूर्वापेक्षया मन्द, लम्बा सांस लेते भी, छोड़ते भी प्रमोद उत्पन्न होता है, प्रमोद के कारण पहले से भी अधिक सूक्ष्म कालिक दृष्टि से लम्बा सांस लेता भी है, छोड़ता भी है। प्रमोद के कारण पूर्वापेक्षया सूक्ष्म, कालिक दृष्टि से लम्बी सांस लेते हुए भी और छोड़ते हुए भी, लम्बी सांस लेने और छोड़ने की ओर से चित्त विरत हो जाता है एवं उपेक्षा स्थित हो जाती है। ये नौ आकार के दीर्घ आश्वास-प्रश्वास काय हैं। (तात्पर्य यह है कि ये नौ प्रकार ही समग्रतः दीर्घ आश्वास-प्रश्वास कहे जाते हैं)। उपस्थान (आधार) स्मृति है। अनुपश्यना ज्ञान है। काय उपस्थान (तो) है (किन्तु) स्मृति नहीं है। स्मृति