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विसुद्धिमग्गो सन्ते वातूपलद्धिया च पभावना होति, अस्सासपस्सानं च पभावना होति, आनापानस्सतिया च पभावना होति, आनापानस्सतिसमाधिस्स च पभावना होति, तं च नं समापत्तिं पण्डिता समापज्जन्ति पि वुठ्ठहन्ति पि। यथा कथं विय?
"सेय्यथापि कंसे आकोटिते पठमं ओळारिका सद्दा पवत्तन्ति, ओळारिकानं सद्दानं निमित्तं सुगहितत्ता सुमनसिकतत्ता सूपधारितत्ता निरुद्धे पि ओळारिके सद्दे अथ पच्छा सुखुमका सदा पवत्तन्ति, सुखमकानं सद्दानं निमित्तं सुग्गहितत्ता सुमनसिकतत्ता सूपधारितत्ता निरुद्धे पि सुखुमके सद्दे अथ पच्छा सुखुमसदनिमित्तारम्मणता पि चित्तं पवत्तति; एवमेव पठमं
ओळारिका अस्सासपस्सासा पवत्तन्ति, ओळारिकानं अस्सासपसासानं निमित्तं सुग्गहितत्ता सुमनसिकतत्ता सूपधारितत्ता निरुद्धे पि ओळारिके अस्सासपस्सासे अथ पच्छा सुखुमका अस्सासपस्सासा पवत्तन्ति, सुखुमकानं अस्सासपस्सासानं निमित्तं सुग्गहितत्ता सुमनसिकतत्ता सूपधारितत्ता निरुद्ध पि सुखुमके अस्सासपस्सासे अथ. पच्छा सुखुमअस्सासपस्सासनिमित्तारम्मणता पि चित्तं न विक्खेपं गच्छति। एवं सन्ते वातूपलद्धिया च पभावना होति, अस्सासपस्सासानं च पभावना होति, आनापानस्सतिया च पभावना होति, आनापानस्सतिसमाधिस्स च पभावना होति, तं च नं समापत्तिं पण्डिता समापजन्ति पि, वुट्ठहन्ति पि।
"पस्सम्भयं कायसङ्खारं अस्सासपस्सासा कायो, उपट्ठानं सति, अमुपस्सना आणं, कायो उपट्ठानं, नो सति। सति उपट्ठानं चेव सति च, ताय सतिया तेन आणेन तं कायं अनुपस्सति। तेन वुच्चति-काये कायानुपस्सना सतिपट्ठानभावना" (खु०नि० ५/२१४) ति।
अयं तावेत्थ कायानुपस्सनावसेन वुत्तस्स पठमचतुक्कस्स अनुपुब्बपदवण्णना॥
समाधान-तब वह 'कायसंस्कार को शान्त करते हुए साँस लूँगा और साँस छोड़ेगा'यों अभ्यास करता है। ऐसा होने पर वायु की उपलब्धि की उत्पत्ति होती है, आश्वास-प्रश्वास एवं आनापान-स्मृति तथा आनापान-स्मृतिसमाधि की भी उत्पत्ति होती है, एवं उस समापत्ति को पण्डित प्राप्त भी करते हैं और उससे उत्थित भी होते हैं। किसके समान?
"जैसे कि जब कोई काँसे पर चोट करता है, तब पहले तो स्थूल शब्द ('टन्' की ध्वनि) उत्पन्न होते हैं। स्थूल शब्दों के निमित्त को भलीभाँति ग्रहण करने पर, मन में लाने पर, धारण करने पर, स्थूल शब्दों के निरुद्ध हो जाने के बाद भी सूक्ष्म शब्द (प्रतिध्वनि) उत्पन्न होते हैं। सूक्ष्म शब्दों के निमित्त को भलीभाँति ग्रहण करने पर, मन में लाने पर, धारण करने पर, सूक्ष्म शब्द के निरुद्ध हो जानेपर भी, बाद में सूक्ष्म शब्दनिमित्त को आलम्बन बनाने वाला चित्त उत्पन्न होता है। इसी प्रकार पहले स्थूल आश्वास प्रश्वास उत्पन्न होते हैं। स्थूल आश्वास प्रश्वासों के निमित्त को भलीभाँति ग्रहण करने पर, मन में लाने पर, भलीभाँति धारण करने पर सूक्ष्म आश्वास-प्रश्वासों का निरोध हो जाने पर भी, सूक्ष्म आश्वास-प्रश्वास निमित्त को आलम्बन बनाने वाला चित्त भी विक्षेप को प्राप्त नहीं होता। ऐसा होने से वायु-उपलब्धि की उत्पत्ति होती है, आश्वास-प्रश्वास की उत्पत्ति होती है, आनापान-स्मृति की उत्पत्ति होती है, आनापानस्मृति-समाधि की उत्पत्ति होती है, और उस समापत्ति को पण्डित प्राप्त करते हैं और उससे उत्थित भी होते हैं।
"काय-संस्कार को शान्त करने वाले आश्वास-प्रश्वास काय है, उपस्थान (स्थापना) स्मृति