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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो न चेतं पित्तकोसके पित्तमिव अखिकूपकेसु सदा सन्निचितं तिठ्ठति। यदा पन सत्ता सोमनस्सजाता महाहसितं हसन्ति, दोमनस्सजाता रोदन्ति परिदेवन्ति, यथारूपं वा विसमाहारं आहारेन्ति, यदा च नेसं अक्खीनि धूमरजपंसुकादीहि अभिहचन्ति; तदा एतेहि सोमनस्सदोमनस्सविसभागाहारउतूहि समुटुहित्वा अक्खिकूपके पूरेत्वा तिट्ठति वा, पग्घरति वा। अस्सुपरिग्गण्हकेन च योगिना अक्खिकूपके पूरेत्वा ठितवसेनेव परिग्गण्हितब्बं। परिच्छेदतो अस्सुभागेन परिच्छिन्नं। अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (२७)
४६. वसा ति। विलीनसिनेहो। सा वण्णतो नाळिकेरतेलवण्णा। आचामे आसित्ततेलवण्णा ति पि वत्तुं वट्टति। सण्ठानतो न्हानकाले पसन्नउदकस्स उपरिपरिब्भमन्तसिनेहबिन्दुविसटसण्ठाना। दिसतो द्वीसु दिसासु जाता। ओकासतो येभुय्येन हत्थतलहत्थपिट्ठिपादतलपादपिट्ठिनासापुटनलाटअंसकूटेसु ठिता। न चेसा एतेसु ओकासेसु सदा विलीना व हुत्वा तिट्ठति। यदा पन अग्गिसन्ताप-सुरियसन्ताप-उतुविसभाग-धातुविसभागेहि ते पदेसा उस्माजाता होन्ति, तदा तत्थ न्हानकाले पसन्नउदकूपरिसिनेहबिन्दुविसटो विय इतो चितो च सञ्चरति । परिच्छेदतो वसाभागेन परिच्छिन्ना। अयमस्सा सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (२८)
. ४७. खेळो ति। अन्तोमुखे फेणमिस्सो आपोधातु। सो वण्णतो सेतो फेणवण्णो।
के रंग का है। संस्थान से अवकाश के संस्थान का। दिशा से-ऊपरी दिशा में है। अवकाश से-आँखों के गड्ढों में स्थित रहता है। वह पित्त कोष में (सञ्चित रहने वाले) पित्त के समान आँखों के गड्ढों में सदा सञ्चित नहीं रहता, किन्तु जब प्राणी प्रसन्न होकर अट्टहास करते हैं, या दुःखी होकर रोते-बिलखते हैं, या वैसा (मिर्च आदि) विषम आहार करते हैं या जब उनकी आँखों को धुएँ, धूल, बालू आदि से पीड़ा होती है, तब इन्हीं सुख दुःख, विषम आहार और ऋतुओं · से उत्पन्न होकर, नेत्र-कूपों में भरकर रहता है या बहता है। अश्रु का परिग्रह करने वाले योगी को नेत्र-कूपों को भरकर स्थित के रूप में ही परिग्रह करना चाहिये। परिच्छेद से-अश्रु भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (२७)
___ ४६. वसा-तरल वसा। वह वर्ण से-नारियल के तैल के रंग की है। माँड़ पर छिड़के गये तैल के रङ्ग की भी कह सकते हैं। संस्थान से-नहाते समय (भरकर रखे गये) स्वच्छ जल के ऊपर तैरी हुई तैल की बूंदों के (चक्राकार) फैलाव के आकार की है। दिशा सेदोनों दिशाओं में है। अवकाश से-अधिकांशतः हथेली, हाथ के पृष्ठभाग, तलवे, पैर के पृष्ठभाग, नासिका-पुट, ललाट और कन्धों के उभरे स्थानों पर रहती है। और वह इन स्थानों पर सर्वदा तरल रूप में नहीं रहती, अपितु जब अग्नि या सूर्य की गर्मी, विषम ऋतु एवं धातु के कारण वे प्रदेश गर्म होते हैं, तब स्नान के समय स्वच्छ जल के ऊपर फैली हुई तैल की बूंदों के समान, उन पर इधर उधर फैल जाती है। परिच्छेद से-वसा भाग से परिच्छिन है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (२८)
४७. थूक-मुख के भीतर का फेन मिश्रित अब्धातु। वह वर्ण से-सफेद फेन के रंग