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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो
९७ ओकासतो पन पुब्बस्स ओकासो नाम निबद्धो नत्थि, यत्थ सो सन्निचित्तो तिट्टेय्य। यत्र यत्र खाणुकण्टकपहरणग्गिजालादीहि अभिहते सरीरप्पदेसे लोहितं सण्ठहित्वा पच्चति, गण्डपीळकादयो वा उप्पजन्ति, तत्र तत्र तिट्ठति। परिच्छेदतो पुब्बभागेन परिच्छिन्नो। अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसो येव। (२३)
४२. लोहितं ति। द्वे लोहितानि-सन्निचितलोहितं च, संसरणलोहितं च। तत्थ सन्निचितलोहितं वण्णतो निपक्कबहललाखारसवण्णं। संसरणलोहितं अच्छलाखारसवण्णं। सण्ठानतो उभयं पि ओकाससण्ठानं । दिसतो सन्निचितलोहितं उपरिमाय दिसाय जातं। इतरं द्वीसु दिसासु जातं। ओकासतो संसरणलोहितं, ठपेत्वा केसलोमदन्तनखानं मंसविनिमुत्तट्टानं चेव थद्धसुक्खचम्मं च, धमनिजालानुसारेन सब्बं उपादिण्णसरीरं फरित्वा ठितं। सन्निचितलोहितं यकनट्ठानस्स हेट्ठाभागं पूरेत्वा एकपत्तपूरमत्तं हदयवक्कपप्फासानं उपरि थोकं थोकं पग्घरन्तं वक्कहदययकनपप्फासे तेमयमानं ठितं। तस्मि हि वक्कहदयादीनि अतेमेन्ते सत्ता पिपासिता होन्ति। परिच्छेदतो लोहितभागेन परिच्छिन्नं। अयमस्स सभागपरिच्छेदो। विसभागपरिच्छदो पन केससदिसो येव। (२४)
४३. सेदो ति। लोमकूपादीहि पग्घरणकआपोधातु। सो वण्णतो विप्पसन्नतिलतेलवण्णो। सण्ठानतो ओकाससण्ठानो। दिसतो द्वीसु दिसासु जातो। ओकासतो सेदस्स ओकासो
की है। किन्तु मृत शरीर में सड़े हुए गाढ़े माँड़ (पके चावल का पानी) के रंग की होती है। संस्थान से-अवकाश के आकार की है। दिशा से दोनों दिशाओं में उत्पन्न है। अवकाश सेपीब का कोई निश्चित स्थान नहीं है, जहाँ वह एकत्र होकर रहती हो। वह खुंटे, काँटे आदि की चोट से, आग की लपट आदि से जल जाने से शरीर के जिन जिन भागों में रक्त जमकर पक जाता है, या फोड़े-फुसी आदि हो जाते हैं, वहीं वहीं रहती है। परिच्छेद से-पीब भाग से परिच्छिन्न है। यह इसका सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (२३)
४२. रक्त-दो प्रकार का रक्त है-सञ्चित रक्त और प्रवहमान (बहता रहने वाला) रक्त। इनमें, सञ्चित रक्त वर्ण से-पके हुए गाढ़े लाक्षारस के रंग का है। प्रवहमान रक्त स्वच्छ लाक्षारस के रंग का है। संस्थान से-दोनों (प्रकार का) ही अवकाश के आकार का है। दिशा सेसञ्चित रक्त ऊपरी दिशा में है। दूसरा दोनों दिशाओं में पाया जाता है। अवकाश से-प्रवहमान रक्त केश, रोएँ, दाँत, नाखून आदि मांसरहित स्थानों तथा सूखे चमड़े को छोड़कर, धमनियों के जाल के अनुसार, कर्म द्वारा प्राप्त (उपादिन) समस्त शरीर को व्याप्त कर स्थित है। सञ्चित रक्त एक पूरे पात्रभर (परिमाण में है जो) यकृत के निचले भाग को भरते हुए, हृदय, वृक्क, फुफ्फुस, के ऊपर थोड़ा थोड़ा गिरते हुए हृदय, वृक्क, यकृत, फुफ्फुस को तर (आर्द्रतायुक्त) रखता है। जब वह वृक्क, हृदय आदि को तर नहीं रखता, तब प्राणी प्यास का अनुभव करते हैं। परिच्छेद सेरक्त भाग से परिच्छिन्न है। यह इस का सभाग परिच्छेद है। विसभाग परिच्छेद केश के समान ही है। (२४)
४३. स्वेद (पसीना)-रोमकूप आदि से बहने वाला अब्धातु। वह वर्ण से-तिल के स्वच्छ तैल के रंग का होता है। संस्थान से-अवकाश के आकार का है। दिशा से दोनों दिशाओं