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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो
व्याधिपि "इमिना व ब्याधिना सत्ता मरन्ति, न अञ्जेना" ति एवं ववत्थानाभावतो अनिमित्तो । चक्खुरोगेना पि हि सत्ता मरन्ति, सोतरोगादीनं अञ्ञतरेना पि । (२)
कालो पि "इमस्मि येव काले मरितब्बं, न अञ्ञस्मि" ति एवं ववत्थानाभावतो अनिमित्तो। पुब्ब पि हि सत्ता मरन्ति, मज्झन्हिकादीनं अञ्ञतरस्मि पि । (३)
देहनिक्खेपनं पि" इधेव मियमानानं देहेन पतितब्बं, न अञ्ञत्रा" ति एवं ववत्थानाभावतो अनिमित्तं । अन्तोगामे जातानं हि बहिंगामे पि अत्तभावो पतति । बहिगामे जातानं पि अन्तोगामे। तथा थलजानं वा जले, जलजानं वा थले ति अनेकप्पकारतो वित्थारेतब्बं । (४)
गति पि "इतो चुतेन इध निब्बत्तितब्बं" ति एवं ववत्थानाभावतो अनिमित्ता । देवलोकतो हि चुता मनुस्सेसु पि निब्बत्तन्ति, मनुस्सलोकतो चुता देवलोकादीसु पि यत्थ कत्थचि निब्बत्तन्ती ति एवं यन्तयुत्तगोणो ? विय गतिपञ्चके लोको सम्परिवत्तती ति एवं अनिमित्ततो मरणं अनुस्सरितब्बं । (५)
११. अद्धानपरिच्छेदतो ति । मनुस्सानं जीवितस्स नाम एतरहि परित्तो अद्धा, यो चिरं जीवति, सो वस्ससतं, अप्पं वा भिय्यो । तेनाह भगवा - "अप्पमिदं, भिक्खवे, मनुस्सानं आयु,
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करने वाले जीव की अवस्था) के समय भी सत्त्व मर जाते हैं, अर्बुद, पेशी, घन (की अवस्था में भी), महीने, दो महीने, तीन महीने, चार महीने, दस महीने के होकर भी, गर्भाशय से निकलते • समय भी । (यदि बच गये तो) उसके बाद (प्रायः) सौ वर्षों के भीतर, या उसके बाद भी मरते ही हैं । (१)
व्याधि (रोग) भी - " इसी रोग से सत्त्व मरते हैं, और किसी से नहीं" यह निश्चित न होने से अनिमित्त है। आँख के रोग से भी सत्त्व मरते हैं, कान के रोग से भी, या किसी अन्य रोग से भी । (२)
कालो (समय) भी - " इसी समय मरना है, और किसी समय नहीं" ऐसा निश्चय न होने से अनिमित्त है । पूर्वाह्न में भी सत्त्व मरते हैं, मध्याह्न आदि किसी दूसरे समय भी । (३) देहनिक्खेपनं (शरीरपात) भी - "यहीं मरने वाले का शरीरपात होगा, कहीं अन्यत्र नहीं" - ऐसा निश्चय न होने से अनिमित्त है। गाँव में जन्मे हुओं का शरीरपात गाँव से बाहर भी होता है, गाँव के बाहर जन्मे हुओं का गाँव में भी। वैसे ही, स्थल पर जन्मे हुओं का जल में, जल में जन्म लेने वालों का स्थल पर - यों अनेक प्रकार से विस्तार कर लेना चाहिये । (४) गति भी - " यहाँ च्युत होकर यहाँ उत्पन्न होता है" ऐसा निश्चय न होने से अनिमित्त है; क्योंकि देवलोक से च्युत हुए (सत्त्व) मनुष्यों में भी उत्पन्न होते हैं, मनुष्यलोक से च्युत हुए देवलोक आदि में भी जहाँ कहीं उत्पन्न होते हैं। यों कोल्हू (तेल पेरने के यन्त्र) में जुते हुए बैल की तरह (सत्त्व) पाँच गतियों वाले (नरक, पशु, प्रेत, मनुष्य, देव) लोक (योनियों) में घूमता रहता है। यों अनिमित्त होने के रूप में मरण का अनुस्मरण करना चाहिये । (५) (६)
११. अद्धानपरिच्छेदतो ( समय के सीमित होने से ) - आजकल के मनुष्यों का जीवन १. यन्तयुत्तगोणो विया ति । यथा यन्ते युत्तगोणो यन्तं नातिवत्तति, एवं लोको गतिपञ्चकं तत्त
उपमा ।