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विसुद्धिमग्गो
पन अन्तो अपविसन्ते, पविट्टे वा अनिक्खमन्ते मतो नाम होति । चतुत्थं इरियापथानं पि समवुत्तितं लभमानमेव पवत्तति, अञ्ञतरञतरस्स पन अधिमत्तताय आयुसङ्घारा उपच्छिज्जन्ति । सीतुण्हानं पि समवुत्तितं लभमानमेव पवत्तति, अतिसीतेन पन अतिउण्हेन वा अभिमतस्स विपज्जति। महाभूतानं पि समवुत्तितं लभमानमेव पवत्तति, पथवीधातुया पन आपोधातुआदीनं वा अञ्ञतरञतरस्स पकोपेन बलसम्पन्नो पि पुग्गलो पत्थद्धकायो वा अतिसारादिवसेन किलिन्नपूतिकायो वा महाडाहपरेतो वा सम्भिज्जमानसन्धिबन्धनो वा हुत्वा जीवितक्खयं पापुणाति। कबळीकाराहारं पि युत्तकाले लभन्तस्सेव जीवितं पवत्तति, आहारं अलभमानस्स पन परिक्खयं गच्छतीति । एवं आयुदुब्बलतो मरणं अनुस्सरितब्बं ।
१०. अनिमित्ततो ति । अववत्थानतो, परिच्छेदाभावतो ति अत्थो । सत्तानं हिजीवितं ब्याधि कालो च देहनिक्खेपनं गति । पञ्चेते जीवलोकस्मि अनिमित्ता न नायरे ॥
तत्थ जीवितं ताव “एत्तकमेव जीवितब्बं, न इतो परं" ति एवं ववत्थानाभावतो अनिमित्तं। कललकाले पि हि सत्ता मरन्ति, अब्बुद - पेसि - घन - मासिक - द्वे - मास- - तेमासचतुमास - दसमासकाले पि। कुच्छितो निक्खन्तसमये पि । ततो परं वस्ससतस्स अन्ते पि बहि पिमरन्ति येव । (१)
वह (आयु या जीवन) श्वास प्रश्वास के समभाव से (बराबर) चलते रहने से ही चलता है, यदि नासिका से बाहर निकली वायु भीतर न जाय, तो जीवित (सत्त्व को) 'मृतक' कहा जाता है। चार ईर्य्यापथों के बराबर चलते रहने पर ही चलता है। यदि कोई एक (ईर्ष्यापथ, जैसे बैठना लोटना) ही बना रह जाय, तो वही आयु-संसार का उपच्छेद (अर्थात् मृत्यु ) है। सर्दीगर्मी के भी समभाव से रहने पर ही चलता है, बहुत अधिक सर्दी या बहुत अधिक गर्मी से त्रस्त हो जाने पर भी जीवन जातो रहता है । महाभूतों के भी समभाव से रहने पर ही जीवन चलता है, पृथ्वीधातु या जलधातु आदि में से किसी के कुपित हो जाने पर बलशाली पुद्गल का भी शरीर पक्षाघातग्रस्त (पृथ्वीधातु के प्रकोप से), अत्यधिक दाहयुक्त (अग्निधातु के प्रकोप से), या जोड़जोड़ से टूटा हुआ-सा (वायुधातु के प्रकोप से) होकर मृत्यु को प्राप्त होता है। भोजन (कवलीकार आहार - एक - एक ग्रास करके खाया जाने वाला आहार जो कि कर्मलोक में ही होता है) को भी उचित समय पर पाते रहने से ही जीवन चलता है, भोजन न मिलने पर इसका क्षय हो जाता है । यों, आयु की दुर्बलता के रूप में भी मरण का अनुस्मरण करना चाहिये । (५)
१०. अनिमित्ततो- निश्चय (व्यवस्थापन) का अभाव होने से। क्योंकि सत्त्वों केलोक में ये पाँच अनिमित्त हैं (इनके बारे में पहले से कुछ ज्ञात नहीं हो ) - जीवन, रोग, काल, देहपात और गति ॥
( अब इनका क्रमशः वर्णन करते हैं -)
इनमें जीवितं (जीवन) भी - " मात्र इतना ही जीना है, इसके बाद नहीं" - ऐसा निश्चय न होने से अनिमित्त है। कलल (गर्भाधान के समय से लेकर एक सप्ताह तक, प्रतिसन्धि ग्रहण
१. न नायरे ति । न जायन्ति ।