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विसुद्धिमग्गो
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२२. दन्ताति । परिपुण्णदन्तस्स द्वत्तिंस दन्तट्टिकानि । ते पि वण्णतो सेता । सण्ठानतो अनेकसण्ठाना । तेसं हि हेट्ठिमाय ताव दन्तपाळिया मज्झे चत्तारो दन्ता मत्तिकापिण्डे परिपाटिया ठपितअलाबुबीजसण्ठाना। बेसं उभोसु पस्सेसु एकेको एकमूलको एककोटिको मल्लिकमुकुलसण्ठानो। ततो एकेको द्विमूलको द्विकोटिको यानक- उपत्थम्भिनिसण्ठानो, ततो द्वे द्वे तिमूला तिकोटिका । ततो द्वे द्वे चतुमूला चतुकोटिका ति । उपरिमपाळिया पि एसेव नयो । दिसतो उपरिमदिसाय जाता। ओकासतो द्वीसु हनुकट्ठिकेसु पतिट्ठिता । परिच्छेदतो हेट्ठा हनुकट्ठ पतिट्ठितेन अत्तनो मूलतलेन, उपरि आकासेन, तिरियें अञ्ञमञ्जन परिच्छिन्ना, द्वे दन्ता एकतो नत्थि। अयं नेसं सभागपरिच्छेदो । विसभागपरिच्छेदो पन केससदिसों येव । (४)
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२३. तचो ति सकलसरीरं वेठेत्वा ठितचम्मं । तस्स उपरि काळसामपीतादिवण्णा छवि नाम, या सकलसरीरतो पि सङ्कङ्कियमाना बदरट्ठिमत्ता होति । तचो पन वण्णतो सेतो येव । सो चस्स सेतभावो अग्गिजालाभिघातपहरणप्पहारादीहि विद्धंसिताय छविया पाकटो होति । सण्ठानतो सरीरसण्ठानो व होति । अयमेत्थ सङ्ख्पो ।
वित्थारतो पन पादङ्गुलित्तचो कोसकारककोससण्ठानो । पिट्ठिपादत्तचो पुटबन्धउंपाहनदो नाखून एक साथ नहीं है - यह उनका सभाग परिच्छेद है। विभाग परिच्छेद केश आदि के समान ही है । (३)
२२. दन्ता - जिसके पूरे दाँत होते हैं, उसे बीस दाँत की अस्थियाँ होती हैं। वे भी वण्णतो सफेद होते हैं। सण्ठानतो - अनेक आकार के। निचली दन्त- पंक्ति के बीच के चार दाँत मिट्टी के पिण्ड में करीने से जड़े गये लौकी के बीज के आकार के होते हैं। उनके दोनों ओर एक एक दाँत एक जड़ और एक नोक वाले तथा चमेली की कली जैसे होते हैं। उसके बाद के एक एक दाँत दो जड़ों और दो नोकों वाले, गाड़ी के धुरप्रदेश में उसे खड़ा करने के लिये लगाये गये डण्डे के समान होते हैं। बाद के दो दो तीन जड़ों वाले और तीन नोकों वाले होते हैं। उसके बाद के दो दो चार जड़ों वाले और चार नोकों वाले। ऊपर की पंक्ति में भी ऐसा ही है। दिसतोऊपरी दिशा में होते हैं। ओकासतो - दोनों जबड़ों की हड्डियों में जड़े होते हैं। परिच्छेदतोजबड़े की हड्डियों में जड़े होने से, नीचे की ओर अपनी जड़ों की सतह से, ऊपर की ओर आकाश से, चारों ओर एक दूसरे से परिच्छिन्न हैं। दो दाँत एक साथ नहीं हैं। यह उनका सभाग परिच्छेद है । विसंभाग परिच्छेद केश के ही समान है। (४)
२३. तचो – समस्त शरीर को लपेटकर स्थित चर्म ( भीतरी त्वचा) । उसके ऊपर काले, साँवले, पीले आदि रंग वाली बाहरी त्वचा (छवि) होती है। जो कि यदि पूरे शरीर से भी खींच ली जाय तो (एकत्र कर देने पर) बेर के बीज मात्र ( परिमाण की) होती है। त्वचा वण्णतो सफेद ही होती है। ऊपरी त्वचा यदि आग की लपट से जल जाय, चोट-चपेट लग जाय, तब उस भीतरी त्वचा की सफेदी प्रकट हो जाती है। सण्ठानतो- शरीर के ही आकार की होती है। यह आकार के विषय में संक्षेप है।
किन्तु विस्तार से पैर की अंगुलियों की त्वचा रेशम के कीड़े के कोष (खोल) जैसी
१. यानकउपत्थम्भिनी ति । सकटस्स धुरट्ठाने उपत्थम्भकदण्डो ।