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अनुरसतिकम्मट्ठाननिद्देसो
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अपरा पि उपमा-यथा नाम पिण्डपतिको भिक्खु द्वत्तिंसकुलं गामं उपनिस्साय वसन्तो पठमगेहे येव द्वे भिक्खा लभित्वा परतो एकं विस्सज्जेय्य । पुनदिवसे तिस्सो लभित्वा परतो द्वे विस्सज्जेय्य । ततियदिवसे आदिम्हि येव पत्तपूरं लभित्वा आसनसालं गन्त्वा परिभुञ्जेय्य । एवं सम्पदमिदं दट्टब्बं ।
द्वत्तंसकुलगाम वियहि द्वत्तिंसाकारो । पिण्डपातिको विय योगावचरो । तस्स तं गामं उपनिस्साय वासो विय योगिनो द्वत्तिंसाकारे परिकम्मकरणं । पठमगेहे द्वे भिक्खा लभित्वा परतो एकिस्सा विस्सज्जनं विय, दुतियदिवसे तिस्सो लभित्वा परतो द्विन्नं विस्सज्जनं विय च मनसिकरोतो मनसिकरोतो अनुपट्टहन्ते विस्सज्जेत्वा उपट्ठितेसु याव कोट्ठासद्वये परिकम्मकरणं । ततियदिवसे आदिम्हि येव पत्तपूरं लभित्वा आसनसालायं निसीदित्वा परिभोगो वियद्वीसु यो सुट्टुतरं उपट्ठाति, तमेव पुनप्पुनं मनसिकरित्वा अप्पनाय उप्पादनं । (६)
अप्पनातो ति। अप्पनाकोट्टासतो। केसादीसु एकेकस्मि कोट्ठासे अप्पना होती त वेदितब्बा ति अयमेवेत्थ अधिप्पायो । (७)
तयो च सुत्तन्ता ति । अधिचित्तं, सीतिभावो', बोज्झङ्गकोसल्लं ति इमे तयो सुत्तन्ता विरियसमाधियोजनत्थं वेदितब्बा ति अयमेत्थ अधिप्पायो । तत्थ"अधिचित्तमनुयुत्तेन, भिक्खवे, भिक्खुना तीणि निमित्तानि कालेन कालं
अन्य उपमा भी है - जैसे कोई पिण्डपातिक भिक्षु बत्तीस घरों वाले गाँव के पास ठहरे। और पहले वाले घर से ही दुगुनी भिक्षा पाकर उसके अगले (घर) को छोड़ दे। अगले दिन तिगुनी पाकर अगले दो (घरों) को छोड़ दे। तीसरे दिन (भी) पहले (घर) से ही पात्र भर कर भिक्षा पाकर (कहीं और न जाकर सीधे ) विश्रामशाला में जाकर खा ले। यहाँ भी ऐसा ही समझना चाहिये।
गाँव के बत्तीस घरों के समान बत्तीस आकार हैं । पिण्डपातिक जैसा योगी है। उस गाँव के पास उसके रहने के समान बत्तीस आकारों में योगी का परिकर्म है। पहले घर से दुगुनी भिक्षा पाकर अगले एक को छोड़ देने जैसा, और दूसरे दिन तिगुनी पाकर अगले दो को छोड़ देने जैसा, चिन्तन करते करते अनुपस्थित होने वाले को छोड़कर दो उपस्थित भागों में ही परिकर्म का सम्पादन है । तीसरे दिन पहले ही पात्र भर पाकर विश्रामशाला में जाकर परिभोग करने के समान, दो में से जो अधिक अच्छी तरह उपस्थित हो, उसी का बार बार चिन्तन कर अर्पणा का उत्पादन करना है। (६)
अप्पनातो - अर्पणा के भागों से । अभिप्राय यह है कि केश आदि में से एक-एक भाग में अर्पणा (प्राप्त) होती है - ऐसा जानना चाहिये । (७)
तयो च सुत्तन्ता - अधिचित्त (शमथ - विपश्यनाचित्त), शीत- भाव ( निर्वाण ), बोध्यङ्ग कौशल - ये तीन सूत्रान्त वीर्य और समाधि को सम्बद्ध करने के लिये हैं- ऐसा जानना चाहिये । उनमें—
१. अधिचित्तं ति । समथविपस्सनाचित्तं ।
२. सीतिभावो ति । निब्बानं ।