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अनुस्सतिकम्मट्ठाननिद्देसो मरणाभिमुखो सो पि असोको सोकमागतो ति॥ अपि च सब्बं आरोग्यं व्याधिपरियोसानं, सब्बं योब्बनं जरापरियोसानं, सब्बं जीवितं मरणपरियोसानं, सब्बो येव लोकसन्निवासो जातिया अनुगतो, जराय अनुसटो, ब्याधिना अभिभूतो, मरणेन अब्भाहतो। तेनाह
"यथा पि सेला विपुला नभं आहच्च पब्बता। समन्तायानुपरियेय्युं निप्पोथेन्ता चतुद्दिसा॥ एवं जरा च मच्चु च अधिवत्तन्ति पाणिनो। खत्तिये ब्राह्मणे वेस्से सुद्दे चण्डालपुक्कुसे॥ न किञ्चि परिवज्जेति सब्बमेवाभिमद्दति।
न तत्थ हत्थीनं भूमि न रथानं न पत्तिया।
.. न चा पि मन्तयुद्धेन सक्का जेतुं धनेन वा" ति॥ (सं०नि० १/१६९) एवं जीवितसम्पत्तिया मरणविपत्तिपरियोसानतं ववत्थपेन्तेन सम्पत्तिविपत्तितो मरणं अनुस्सरितब्बं । (२)
७. उपसंहरणतो ति। परेहि सद्धिं अत्तनो उपसंहरणतो। तत्थ सत्तहाकारेहि उपसंहरणतो मरणं अनुस्सरितब्बं-यसमहत्ततो, पुञ्जमहत्ततो, थाममहत्ततो, इद्धिमहत्ततो, पामहत्ततो, पच्चेकबुद्धतो, सम्मासम्बुद्धतो ति।
कथं ? इदं मरणं नाम महायसानं महापरिवारानं सम्पन्नधनवाहनानं महासम्मतमन्धातुमहासुदस्सनदळ्हनेमिनिमिप्पभुतीनं पि उपरि निरासङ्कमेव पतितं, किमङ्ग पन मय्हं उपरि न पतिस्सति!
अन्त में आधे आँवले पर ही आधिपत्य रह गया। पुण्यों का क्षय होने पर उसी शरीर से मरणासन्न वह अशोक भी शोक को प्राप्त हुआ।
_ और भी-सब (के) आरोग्य का अन्त व्याधि है, सभी यौवनों का अन्त बुढ़ापा है, सभी जीवनों का अन्त मृत्यु है। समस्त लोक जो जन्म ले रहा है, जरा (बुढ़ापे) से अनुसृत (क्रमशः ग्रसित) है, रोग-सन्त्रस्त है, मृत्यु से मारा हुआ है। अतः कहा है
__ "जैसे गगनचुम्बी विशाल पर्वत चारों और फैलते हुए, चारों दिशाओं को चूर-चूर कर रहे हों वैसे ही यह जरा और मृत्यु क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र, चाण्डाल, अन्त्यज (सभी) प्राणियों को कुचल देती है, वह किसी को भी नहीं छोड़ती॥
"उस मृत्यु के राज्य में न तो हाथियों के लिये स्थान है, न रथों या पैदल सेना के लिये, और न ही उसे मन्त्रयुद्ध से या धन से जीता जा सकता है। (सं० नि० १/१६९)
यों, जीवन रूपी सम्पत्ति मरणरूपी विपत्ति में ही पर्यवसित होती है-ऐसा विचार करते हुए सम्पत्ति-विपत्ति के रूप में मरण का अनुस्मरण करना चाहिये॥".
७. उपसंहरणतो-दूसरों के साथ अपनी तुलना से। यहाँ, सात प्रकार से तुलना करते हुए मरण का अनुस्मरण करना चाहिये-महायशस्वियों के साथ, महापुण्यवानों...महाबलवानों... महाऋद्धिमानों...महाप्राज्ञों...प्रत्येकबुद्धों...एवं सम्यक्सम्बुद्धों के साथ। 2-6