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विसुद्धिमग्गो ५१. आयस्मता महाकच्चानेन देसिते सम्बाधोकाससुत्ते पि "अच्छरियं, आवुसो, अब्भुतं, आवुसो, यावञ्चिदं तेन भगवता जानता पस्सता अरहता सम्मासम्बुद्धेन सम्बाधे ओकासाधिगमो अनुबुद्धो सत्तानं विसुद्धिया...पे०...निब्बानस्स सच्छिकिरियाय यदिदं छ अनुस्सतिट्ठानानि। कतमानि छ? इधावुसो, अरियसावको तथागतं अनुस्सरति...पे०... एवमिधेकच्चे सत्ता विसुद्धिधम्मा भवन्ती" (अं नि० ३/४१, ४२) ति एवं अरियसावकस्सेव परमत्थविसुद्धिधम्मताय ओकासाधिगमवसेन कथिता।
उपोसथसुत्ते पि "कथं च, विसाखे, अरियुपोसथो होति ? उपक्किलिट्ठस्स, विसाखे, चित्तस्स उपक्कमेन परियोदपना हाति। कथं च, विसाखे, उपक्विलिट्ठस्स चित्तस्स उपक्कमेन परियोदपना होति ? इध, विसाखे, अरियसावको तथागतं अनुस्सरती" (अं० नि० १/२७१) ति। एवं अरियसावकस्सेव उपोसथं उपवसतो चित्तविसोधनकम्मट्ठानवसेन उपोसथस्स महप्फलभावदस्सनत्थं कथिता।
एकादसनिपाते पि "सद्धोखो, महानाम, आराधको होति नो अस्सद्धो।आरद्धविरियो उपद्वितसति समाहितो पञवा, महानाम, आराधको होति, नो दुप्पञो। इमेसु खो त्वं, महानाम, पञ्चसु धम्मेसु पतिट्ठाय छ धम्मे उत्तरि भावेय्यासि। इध त्वं, महानाम, तथागतं अनुस्सरेय्यासि इति पि सो भगवा" ति एवमरियसावकस्सेव "तेसं नो, भन्ते, नानाविहारेन
निकल चुका, मुक्त और उठा हुआ। भिक्षुओ, 'गेध' इन पाँच कामगुणों को कहते हैं। भिक्षुओ, कोई कोई सत्त्व इस (अनुस्मृति) को भी आलम्बन बनाकर विमुक्त हो जाते हैं" (अ० नि० ३/ ३९)-ये (अनुस्मृतियाँ) इसलिये बतलायी गयी हैं कि अनुस्मृति द्वारा आर्यश्रावक की चित्तशुद्धि हो तथा बाद में परमार्थविशुद्धि (निर्वाण) की प्राप्ति हो।
___ ५१. आयुष्मान् महाकच्चान द्वारा देशित सम्बाधोकाससुत्त में भी-"आश्चर्य है, आयुष्मन्! अद्भुत है आयुष्मन्, जो कि उन जानने वाले, देखने वाले, अर्हत् सम्यक्सम्बुद्ध भगवान् ने सम्बाध (गृहस्थजीवन की सीमाओं) में अवकाश का अन्वेषण किया, सत्त्वों की विशुद्धि के लिये ...पूर्ववत्... निर्वाण के साक्षात्कार के लिये, जो कि वे छह अनुस्मृति (कर्म) स्थान हैं। कौन से छह? यहाँ आयुष्मन्! आर्यश्रावक तथागत का अनुस्मरण करता है...पूर्ववत्...यहाँ कोई कोई सत्त्व विशुद्ध धर्मों वाले होते हैं" (अ० नि० ३/४१, ४२)-इस प्रकार यहाँ (अनुस्मृतियों को) आर्यश्रावकों की ही परमार्थविशुद्धि धर्मता द्वारा अवकाश की प्राप्ति के रूप में बतलाया गया है।
उपोसथसुत्त में भी-"विशाखे, आर्यों का उपोसथ क्या है?...विशाखे, उपक्लिष्ट (क्लेशसहित) चित्त का क्रमशः परिशोधन। विशाखे! उपक्लिष्ट चित्त का क्रमशः विशोधन क्या है? यहाँ, विशाखे, आर्यश्रावक तथागत का अनुस्मरण करता है" (अ० नि० १/२७१)-इस प्रकार उपोसथ में भाग लेने वाले आर्यश्रावक के चित्त की विशुद्धि करने वाले कर्मस्थान के रूप में उपोसथ का महान् फल दिखाने के लिये अनुस्मृतियाँ बतलायी हैं। .
अत्तरनिकाय के एकादश निपात में भी-"महानाम, श्रद्धालु ही मन को प्रसन्न करने वाला होता है, अश्रद्धालु नहीं। महानाम, वीर्यवान्, स्मृतिमान्, एकाग्रचित्त, प्रज्ञावान् ही मन को प्रसन्न करता है, दुष्प्रज्ञ नहीं। महानाम, तुम इन पाँच धर्मों में प्रतिष्ठित होकर छह उच्चतर धर्मों की भावना करना। यहाँ, महानाम! तुम तथागत का अनुस्मरण करना-"वे भगवान् ऐसे हैं