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विपाक सूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध
देखा, देख कर जातश्रद्ध (प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले) गौतमस्वामी ने भगवान् महावीर स्वामी से निवेदन किया - 'हे भगवन्! क्या कोई ऐसा पुरुष भी है जो जन्मान्ध और जन्मान्ध रूप हो?'
भगवान् ने फरमाया - 'हाँ, ऐसा पुरुष है।' हे भगवन्! वह पुरुष कहां है जो जन्मान्ध और जन्मान्ध-रूप हो?
भगवान् ने फरमाया - 'हे गौतम! इसी मृगाग्राम नगर के विजय नामक क्षत्रिय राजा का पुत्र, मृगादेवी का आत्मज मृगापुत्र नामक बालक है जो जन्मान्ध और जन्मान्ध रूप है। उसके हाथ, पैर, आंखें आदि अंगोपांग भी नहीं हैं मात्र उन अंगोपांगों के आकार ही हैं। महारानी मृगादेवी सावधानी पूर्वक उसका पालन पोषण कर रही है।
विवेचन - शंका - जन्मान्ध और जन्मान्ध-रूप में क्या अंतर है?
समाधान - जन्मान्ध का अर्थ है - जो जन्मकाल से अंधा हो, नेत्र ज्योति हीन हो तथा जन्मान्ध-रूप अर्थात् जिसके नेत्रों की उत्पत्ति ही नहीं हो पाई हो। दोनों में अंतर इतना है कि जन्मान्ध के नेत्रों का मात्र आकार होता है उसमें देखने की शक्ति नहीं होती जबकि जन्मांध-रूप के नेत्रों का आकार भी नहीं बनने पाता, इसलिये वह अत्यधिक कुरूप तथा बीभत्स होता है।
गौतम स्वामी का प्रयोजन तए णं से भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते! अहं तुन्नेहिं अन्मणुण्णाए समाणे मियापुत्ते दारयं पासित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया!. ..
तए णं से भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाये हट्टतुढे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिवाओ पक्षिनिक्सा पासलक्खमित्ता अतुरियं जाव सोहेमाणे-सोहेमाणे जेणेव मियग्गामे पयरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता मियग्गामं णयरं मझमझेणं जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागच्छा
तए ण सा मियादेवी भगवं गोयमं एजमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठ जाव एवं बयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया! किमागमणप्पओयणं?
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