Book Title: Tiloy Pannati Part 2
Author(s): Vrushabhacharya, A N Upadhye, Hiralal Jain
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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. त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना कृष्णवर्ण और शुक्लवर्ण परिणमता है " । पर्वराह छह छह मासोंमें पूर्णिमाक अन्तमें गतिविशेषसे चन्द्रमण्डलोंको आच्छादित किया करते हैं ।
चन्द्रके समान सूर्य भी जम्बूद्वीपमें दो ही हैं। इनकी भी संचारभूमि ५१०१६ ( १८० + ३३० +१८ ) यो. है । इसमें सूर्यविम्बके समाम विस्तृत और इससे आधे बाहत्यवाली १८४ वीथियां हैं। प्रथम वीथोंमें सूर्य मेरुसे १४८२० यो. दूर रहता है। यह दूरी आगे उत्तरोत्तर २४८ यो. अधिक होती गई है । प्रथम पथमें स्थित दोनों सूर्योका अन्तर ९९६४० यो. ( ४४८२० x २ + १०.०० ) यो. होता है। यह अन्तर द्वितीयादि पयोंमें ५.३५ यो. अधिक होता गया है । इन पथपरिधियोंमेसे प्रत्येकके १०९८०० यो. प्रमाण गगनखण्ड किये गये हैं । चूंकि सूर्य एक मुहूर्त में इनमें से १८३० गगनखण्डोंको लांघता है, अतः समस्त गगनखण्डोके लांघनेमें दोनों सूर्योको ६० मुहूर्त लगते हैं । सूर्य जब प्रथम पथमें स्थित रहता है तब दिन व रात्रि क्रमशः १८ व १२ मुहूर्त प्रमाण होते हैं। भागे द्वितीयादि पथोंमें दिन २ मुहूर्त कम और रात्रि उतनी ही अधिक होती जाती है । इस प्रकार अन्तिम पथमें सूर्यके स्थित रहनेपर दिनका प्रमाण १२ मुहूर्त और रात्रिका १८ मुहूर्त हो जाता है।
- इसके आगे सूर्यके प्रथमादि पोंमें स्थित होने पर कहां कितनी धूप और कितना भंधेरा रहता है, यह विस्तारसे बतलाया है। इसी प्रकार भात एवं ऐरावत क्षेत्रमें सूर्यके उदयकालमें कहां कितना दिन और रात्रि होती है, यह भी निर्दिष्ट कर दिया है। जम्बूद्वीपमें स्थित दोनों सूर्य पृथक् पृथक् आग्नेय व वायव्य दिशासे दो दो योजन लांघकर प्रथम पथसे द्वितीय पथमें प्रविष्ट होते हैं।
तत्पश्चात् अठासी ग्रहोंकी संचारभूमि और वीथियोंका निदश मात्र किया है, उनकी विशेष प्ररूपणा नहीं की गई है। इसका कारण काल वश तद्विषयक उपदेशका नष्ट हो जाना बतलाया गया है। आगे चलकर अट्ठाईस नक्षत्रों की प्ररूपणा की गई है। इसका विवरण पृ. १०३. पर यंत्रके रूपमें दिया गया है, अतः वहांपर देखा जा सकता है। तत्पश्चात् चन्द्र-सूर्यादि उक्त ज्योतिषी देवोंकी संख्या, आहार, उच्छ्वास, और उत्सेध आदिको कहकर इस महाधिकारको समाप्त किया गया है।
८ सुरलोक-महाधिकारमें ७०३ पद्य हैं । इसमें वैमानिक देवोंका निवासक्षेत्र, विन्यास, भेद, नाम, सीमा, विमानसंख्या, इन्द्रविभूति, आयु, जन्म-मरणअन्तर, आहार, उच्छ्वास, उत्सेध, आयुबन्धक भाव, लौकान्तिक देवोंका स्वरूप, गुणस्थानादिक,
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