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अध्याय १ : मोक्षमार्ग १३ विवेचन - तत्त्व रूप से श्रद्धान करने का अभिप्राय भावपूर्वक निश्चय करना है । तत् शब्द सामान्य के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और उसमें 'त्व' प्रत्यय लगा है । अतः तत्त्व का अभिप्राय है पदार्थ का स्वरूप; अर्थ शब्द का प्रयोग निश्चय के लिए हुआ है । जैसा कि निरुक्त में कहा गया है - 'अर्थते निश्चीयते इति अर्थः' अर्थात् जिसका निश्चय किया जाय वह अर्थ हैं । सरल शब्दों में - तत्त्वों/पदार्थों का उनके अपने-अपने स्वरूप के अनुसार जो श्रद्धान (भाव और रुचिपूर्वक निश्चय) होता है, वह सम्यग्दर्शन है ।
जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक पदार्थ द्रव्य और भाव (अर्थात् पर्याय) से समन्वित होता है । अतः पदार्थ का यथातथ्य ज्ञान द्रव्यदृष्टि एवं पर्यायदृष्टि दोनों ही प्रकार से विचार करने पर प्राप्त होता है । यहाँ द्रव्य का अभिप्राय है सामान्य और पर्याय का अर्थ है विशेष ।।
अतः इस सूत्र का एक आचार्य ने यह भी अर्थ किया है कि तत्त्व का द्रव्य और भाव (अर्थ) दोनों ही प्रकार से भलीभाँति जानकर श्रद्धान (दृढ़ विश्वास) करना, सम्यग्दर्शन हैं ।
. किसी भी वस्तु के बारे में भलीभाँति जानने के लिए सामान्य विशेष का यह सिद्धान्त सर्वव्यापी है । पश्चिमी जगत में इसे General & Special Theory सामान्य-विशेष विधि कहा जाता है । Spearman द्वारा प्रचलित इस विधि को संक्षेप में G. S. Theory कहते हैं और यह सभी पदार्थों को जानने में प्रयुक्त की जाती है ।
अतः संक्षेप में सम्यग्दर्शन का लक्षण इस प्रकार दिया जा सकता है
किसी भी पदार्थ (तत्त्व) अथवा (सूत्र ४ में वर्णित) सभी तत्त्वों का भलीभाँति (द्रव्यदृष्टि और पर्यायदृष्टि दोनों से) जानकर श्रद्धान (निश्चय पूर्वक दृढ़ विश्वास) करना, सम्यग्दर्शन है । आगम वचन
सम्मइंसणे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा.णिसग्गसम्मदसणे चेव अभिगमसम्मइंसणे चेव ।
(-ठाणं, ठाण २, उ. १, सु. ७०) (सम्यग्दर्शन दो प्रकार का होता है- एक, निसर्गज सम्यग्दर्शन और दूसरा, अभिगमज सम्यग्दर्शन।) सम्यग्दर्शन प्राप्ति के प्रकार-
तन्निसर्गादधिगमाद्वा । ३ । अथ -वह (सम्यग्दर्शन) दो प्रकार से प्राप्त होता है-एक स्वभाव से
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