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( २७ ) . भाषार्थ-कोईकै तो भला पुत्र मरि जाय है, कोईकै इष्ट स्त्री मरिजाय है. कोईकै घर कुटुम्ब सर्व ही अग्नि करि बलि जाय है। एवं मणुयगदीए णाणा दुक्खाइं विसहमाणो वि । ण वि धम्मे कुणदि मइं आरंभं णेय परिचयइ ॥५५॥ ___ भाषार्थ--ऐसें पूर्वोक्त प्रकार मनुष्य गतिविष नानाप्रकार दुःखनिकू सहता भी यह जीव धर्मविषै बुद्धि नाहीं करै है. पापारम्भकू नाहीं छोड़े है।। सधणो वि होदि णिधणोधणहीणोतह य ईसरोहोदि राया विहोदि भिच्चो भिच्चो वि य होदि णरणाहो ॥
भाषार्थ-धनसहित तौ निर्धन होय है तैसैं ही निधन होय सो ईश्वर हो जाय है. बहुरि राजा होय सो तो किंकर होय जाय है और किंकर होय सो राजा होय जाय है । सत्तू वि होदि मित्तो मित्तो विय जायदे तहा सत्तू। कम्मविवायवसादो एसो संसारसम्भावो ॥५७ ॥ - भाषार्थ-कर्मके उदयके वशतें वैरी होय सो तौ मित्र होय जाय है. बहुरि मित्र होय सो वैरी होय जाय है. यह संसारका स्वभाव है. भावार्थ-पुण्यकर्मके उदयते वैरी भी मित्र होय जाय अर पापकर्मके उदय मित्र भी शत्रु होय जायः संसारमें कम ही बलवान है। आगे देवगतिका स्वरूप कहै हैं