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(१४६) भ्यास करै हैं. बहुरि अभ्यास कीये भी तवकी धारणा विरले निकै होय है. भावार्थ-तत्वार्थका यथार्थ स्वरूप सुनना जानना भावना धारणा उत्तरोत्तर दुर्लभ हैं इस पांचमां का. लमें तत्त्वके यथार्थ कहनेवाले दुर्लभ हैं अर धारनेवाले भी दुर्लभ हैं ॥ २७६ ॥
आगे कहै हैं जो कहे तत्वकौं सुनिकर निश्चल भावते मात्रै सो तत्त्वकौं जाणै,तचं कहिज्जमाणं णिच्चलभावेण गिलदे जो हि । तं चिय भावेइ सया सो वि य तच्चं वियाणेई २८० ___ भाषार्थ-जो पुरुष गुरुनिकरि कह्या जो तत्त्वका स्वरूप ताकौं निश्चल भाव करि ग्रहण करै है, बहुरि तिसकौं अन्य भावना छोडि निरंतर मात्रै है, सो पुरुष तत्वकौं जाण है। ___ आगे कहै हैं तत्त्वकी भावना नाहीं करै है, सो स्त्री प्रादिके वश कौन नाही है ? सर्व लोक है,- .. को ण वसो इत्थिजणे कस्स ण मयणेण खंडियं माणं को इंदिएहिं ण जिओ को ण कसाएहिं संतत्तो॥
भाषार्थ-या लोकविष स्त्रीजनके वश कौन नाहीं है ? बहुरि कामकरि जाका मन खण्डन न भया ऐसा कौन है ? बहुरि इन्द्रियनिकरि न जीया ऐसा कौन है ! बहुरि कषायनिकरि तक्षायमान नाहीं ऐसा कौन है ? भावार्थ-विषय